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सून ३६४-३६७
वश धमविशोधि
अनाचार
[१८१
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६. णामोवधाते,
(६) प्रमाद' आदि से होने वाला ज्ञान का उपघात । ७.सणोवधाते,
(७) शंका आदि से होने वाला दर्शन का उपघात । ८. परिसीवघरते,
(5) नमितियों के यथाविधि पालन न करने से होने वाला
चारित्र का उपधात। ६. अचियतोवधाते,
(E) अप्रीति या अविनय से होने वाला विनय गुण का
उपघात। १०. सारखणोवधाते। - ठाण. अ. १०, सु. ७३८(१) (१०) शरीर, उपधि आदि में मूर्छा रखने से होने वाला
परिग्रह महाव्रत का उपधात । दस धम्मविसोहि
दश धर्मविशोधि३६५. समिता सिोही पाता. लहा-..
३६५. विशोधि दस प्रकार का कहा गया है, यथा१. जग्गमषिसोही, २. उपायविसोही,
(१) उदयम की विशोधि, (२) उत्पादन की विशोधि । ३. एसपाविसोही ४. परिकम्मविसोही,
(३) एषणा की विशोधि, (४) परिकम की विगोधि । ५. परिहरणविसोही ६. गाणविसोही,
(५) परिहरण की विशोधि, (६) शान की विशोधि, ७. सविसोही, . रित्तषिसोही,
(७) दर्शन की विशोधि, (८) चारित्र की विशोधि, ६. अघियत्तविसोही,
(8) अप्रीति की विशोधि, १०. सारक्खणविसोही। -ठाणं. अ. १०, सु. ७३०(२) (१०) संरक्षण-विशोधि-संयम के साधनभुत उपकरण
रखने से होने वाली विशोधि । अट्ठारस पावट्ठाणा
अठारह प्रकार के पाप स्थान३६६. अट्ठारस पावठाणा पण्णता, तं जहा
३६६. अठारह पापस्थान कहे गये हैं । यथा१. पाणाइवाए, २. मुसाबाए, ३. अदिग्णादाणे, (१) प्राणातिपात, (२) मृषावाद, (३) भदत्तादान, ४. मेहणे, ५. परिग्गहे, ६. कोहे,
(४) मैथुन, (५) परिग्रह, (६) क्रोध, ७.माणे, ८. माया, ह.सोमे,
(७) मान, () माया, (६) लोभ, १.. पेक्जे, ११. दोसे, १२. कलहे,
(१०) राग, (११) वृष, (१२) कलह, १३. अम्मक्खाणे, १४. पेसुण्णे, १५. परपरिवाए, (१३) अभ्याख्यान (कलंक), (१४) पंशुन्य (चुगली), १६. अरतिरति, १७, मायामोसे १८. मिच्छावसणसल्ले। (१५) परपरिवाद (निन्दा), (१६) अरतिरति, (हर्ष शोक]
--वि. म. १. उ. ६, सु. ११ (१७) मायामृषा, (१०) मिथ्यादर्शनशल्य ।
औद्देशिकादि अनाचार-५
ओसियाई अणायाराई३६७. संजभे सुट्ठिअप्पाणं, विप्पमुक्काण ताइणं । .. तेप्तिमेयमणाहण, निगथाण महेसिणं ॥
औ शिकादि अनाचार३६७. संयम में सुस्थित वाह्याभ्यंतर परिग्रह से मुक्त, छ: काय के रक्षक निर्ग्रन्थ महर्षियों के ये आचरण के भयोग्य स्थान है -
१ ठाणं. अ. ३, उ. ४, सु. १७८ ३ (क) वि. स. २, उ. १, सु.५०
(ग) वि. स. १७, उ. २, मु, १७
२ ठाणं. अ. ५,उ.२, सु. ४२५
(ख) वि. स. ७, उ. १०, मु. १६ (घ) वि. स. १८, उ. ४, सु.२