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________________ १०] चरणानुयोग-२ छः कल्प के बिन करने वाले स्थान प्रमाद के प्रकार-४ छप्पस्स विग्घकरा ठाणा३६२. कप्पस्स , पलिमंथू पग्णता, त जहा १. कोक्कुइए संजमस्स पलिमपू । २. मोहरिए सध्यवयणस्स पलिम) । ३. चक्खुलोलुए ईरियावहियाए पलिमंयू । ४. तितिगिए एसणागोयरस्स पलिमंथू । ५. इक्छालोलुए मुत्तिमगस्स पलिमथ । ६. मिज्जानियाणकरणे मोक्खमम्गस्स पलिमघू । छः कल्प के विघ्न करने वाले स्थान३६२. कल्प साध्वाचार के घातक छ: प्रकार के कहे गये हैं। वथा (१) देखे बिना या प्रमार्जन किये बिना कायिक प्रवृत्ति करना संयम का घातक है। (२) वाचालता-सत्य वचन का घातक है। (३) इधर उधर देखते हुए गमन करना-ईर्यासमिति का घातक है। (४) आहारादि के अलाभ से खिन्न होकर चिढना-एपणासमिति का घातक है। (५) उपकरण आदि का अति लोभ, अपरिग्रह का धातक है। (६) लोभवश निदान (तप के फल की कामना) करना, मोक्ष मार्ग का वातक है। क्योंकि भगवान से सर्वत्र अनिदानता= निस्पृहता प्रशस्त कही है। छः प्रकार के प्रमाद३६३. प्रमाद के छह प्रकार हैं, यथा-- (१) मद्यप्रमाद, (२) निद्राप्रमाद, (B) विषयप्रमाद, (४) कषायप्रमाद, (५) द्यूतप्रमाद, (६) प्रतिलेखना प्रमाट। सव्वस्थ भगवया अनियाणया पसत्या। -कप्प. उ. ६, सु. १६ छबिहे पमाए३६३. छविए पनाए पण्णते, तं जहा१. मस्जपमाए. २. गिद्दपमाए, ३. विसयपमाए, ४. कसायपमाए, ५. जूतपमाए, ६. पडिलेणापमाए। -- ठाणं. अ. ६, सु. ५०२ दस धम्मघायगा२६४. बसविधे उबघाते पण्णते, हं जहा १. उगमोवधाते, २. उप्पायगोवधाते, दस धर्म के घातक३६४. उपचात दस प्रकार का कहा गया है। जैसे (१) भिक्षा सम्बन्धी उद्गम दोषों से होने वाला धारिष का उपघात। (२) भिक्षा सम्बन्धी उत्पादन से होने वाला चारित्र का उपधात । (३) भिक्षा सम्बन्धी एषणा के दोष से होने वाला चारित्र का उपपात । (४) वस्त्र-पात्र आदि के परिकर्म से होने वाला चारित्र का उपधात। (५) अकल्प्य उपकरणों के उपभोग से होने वाला चारित्र का उपधात। ३. एसणोक्याते, ४. परिसम्मोवघाते, ५ परिहारगोवघाते. १ २ ठाणं अ. ६, सु. ५२९ ठाणं. अ. ३, उ. ४, सु. १७८ ३ ठाणं. अ.५, उ.२. सु. ४२५
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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