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________________ १५२] घरणानुयोग-२ बश धर्मविशोधि सूत्र २६७ १ उद्देसियं २ कोयगई, ३ नियाग ४ म भिड़ाणि । ५ राइमते ६ सिणाणे य, ७ गंध : मल्ले यह वीयणे ।। १० सन्निही ११ पिहिमत्ते य, १२ रापिड १३ किमिन्छए। १४ संवाहणा १५ दंतपहोयमा य, १६ संपुच्छणा १७ बेहपलोयणा य॥ १८ अट्ठावए य १६ नालीए, २० छत्तस्स य धारणट्टाए। २१ तेगिमई २२ पाणहा पाए. २३ समारंमं च जोहणो ॥ २४ सेज्जायपि च, २५. आसंदीपलियंकए । २६ गिहतरनिग्जा य, २७ गायस्सुव्यदृणाणि य ।। (१) निग्रन्थ के निमित्त बनाया गया, (२) निर्ग्रन्थ के निमित्त खरीदा गया, (३) निमन्वित कर प्रतिदिन दिया जाने वाला और (४) निर्ग्रन्थ के निमित्त दूर से सम्मुख लाया गया आहारादि लेना, (५) रात्रि भोजन करना, (६) स्नान करना, (७) सुगन्धित पदार्थ संघना, (८) पुष्पादि की माला पहनना, (E) पंखा आदि से हवा करना। (१०) खाद्य वस्तुओं का संग्रह करना, (११) गृहस्थ के पात्र में भोजन करना, (१२) मूर्धाभिषिक्त राजा के घर से भिक्षा लेना, (१३) "तुम्हें क्या चाहिये", यो पूछकर दिया जाने वाला आहारादि लेना, (१४) हाथ पैर आदि दबाना, (१५) दांतों का प्रक्षालन करना, (१६) गृहस्थ का कुशल क्षेम पूछना, (१५) दर्पण आदि में मुख देखता। (१८) शतरंज खेलना, (१६) नलिका से पासा टाल कर जुआ खेलना, (२०) छत्र धारण करना, (२१) गृहस्थ की चिकित्सा करना, (२२) परों में जूते पहनना, (२३) अग्नि जलाना। (२४) शय्यातरपिण्ड ग्रहण करना, (२५) बेंत आदि की कुर्सी पर बैठना, पलंग पर बैठना, (२६) ग्रहस्थ के घर में बैठना, (२७) पारीर पर उबटन करना। (२८) गृहस्थ की सेवा करना, (२६) जाति कुल आदि बता कर भिक्षा प्राप्त करना, (३०) अद्ध-पव-मिश्र पदार्थों का उपभोग करना, (३१) शुधा आदि से पीड़ित होकर भुक्त भोगों का स्मरण करना। (३२) मचिस मूला, (३३) अदरख, (३४) इक्षुखंड, (३५) कंद, (३६) मूल, (३७) फल, (३८) वीज आदि ग्रहण करना । (३६) सचित्त सौवर्चल नमक, (४०) संन्धव' नमक, (४१) रोम नमक, (४२) समुद्र-नमक, (४३) पुची खार, (४४) काला लवण आदि ग्रहण करना। (४५) वस्त्रादि को धूप आदि से सुगन्धित करना, (४६) अकारण औषध द्वारा अमन करना, (४७) वस्तिकर्म करना, (४८) औषध द्वारा विरेचन करना । (४६) आँखों में अंजन आंजना, (५०) दांतों को दतौन से घिसना व मस्सी लगाना, (५१) शरीर की तेल आदि से मालिश करना, (५२) शरीर को विभूषित करना। २- गिहिणो वेपावलियं, जाय २६ आजीवत्तिया । ३० तत्तानिध्यडभोरस, ३१ भाउरस्सरणाणि य ।। ३२ मूलए ३३ सिगबेरे य. ३४ उच्छृखंड अनिव्वुड़े। ३५ करे ३६ मूले य ३७ सनित्ते, फले २५ बीए प आमए ।। ३६ सोयच्चले ४० सिधये लोणे ४१ रोमालोणे य आमए । ४२ सामुद्दे ४३ पंसुखारे य ४४ कासालोणे य आमए॥ ४५ घूषणेत्ति ४६ बमणे य ४७ वस्थीकम्म ४८ विरेयणे । ४६ अंजणे ५० वंतवणे ५५१ गायम्भंगविमसणे १ सूय. सु. २, अ. १, सु. ६८१ २ आगमों में श्रमण वर्ग के आचारों एवं अनानारों का अनेक जगह प्ररूपण है। कहीं संख्या का निर्देश है और कहीं नहीं है। स्थानांग में दम यति धर्म, आचारांग वनस्कन्ध २ अ. १५ में और अपनव्याकरण के पांचवें संवर द्वार में पांच महावतों की पच्चीस भावनाएं, दशवकालिक अ, ६ में और समवायांग में अठारह स्थान इस प्रकार संख्या निर्देश पूर्वक आचारों का आगमों में अनेक जगह प्ररूपण है। (शेष अ ले पृष्ठ पर)
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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