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________________ सूत्र ३०३ ० से संपट्टिए जसंपते अप्पा व मेवा करेज, से कि बाराहए विराहए ? उ०- गोमा ! आर नो बिराए १०- सेय संपट्टिए संपले, थेरा य अमुहा सिपा, सेमं मं कि बाराहए विराहए ? नारायक- निम्ब-मिप्रंग्वी उ०---- गोपमा ! आराहए, नो विराहए। प० ० से व संपद्विट संपते अध्यमा व पुरुषामेव विवा से मंते कि आराहए, बिराहए ? उ०- गोयमा ! आराहए, नो बिराहए । प० से संपट्टिए संपले बेरे सेमं कि आराहए विराहए ? उ०--- गोथमा ! आराहए, तो विराहए । ५० से संपड़िए संपते अव्यमा पपुवामेव कार्य सेमं कि आररहए विराहए ? उ०- गोया ! आराहए, जो विराहए । एवं महिया विधारभूमि वा विहारभूमि वा क्ि दि एए चैव अट्ठ आलावा भाणियन्वा । एवं गामाणुगामं इज्जमाणेण वि एए चेव अट्ट आलावा भाणियब्वा एवं जहा णिग्गंथस्स तिणि गम्मा भणिया, एएए र तिमि ममा भागिव्या प०- से केणट्टेणं मंते ! एवं शृच्च आहए, नो बिराए ? गोषमा से महानामए के पुरिसे एवं महं सोमं वा, गयलोमं वा, सणलोमं वा कप्पासलोमं वा, तसू वा, हावा, तिहा वा, संखेकहा था, fafter अगणिकासि पवित्र बेज्जा से सूजं गोषमा! जिमा पिलिप्यमाणे पश्चि समाने सत्तव्यं शिया ? हंसा भगवं । जिमाने डिजाल बत्त सिया । आराधक-विराधक [१२३ प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुवा किन्तु वहाँ पहुंचा नहीं उससे पूर्व ही स्वयं काल कर जाये तो है भगवन् I वह निर्धन्य धाराधक है या विराधक ? उ०- गौतम ! बहू निर्ग्रन्य आराधक है, विराधक नहीं । प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिये रवाना हुआ और स्थविरों के पास पहुँच गया, तत्पश्चात् वे स्थविर मुनि मुक हो जाएं तो हे भगवन् वह निर्धन्य आराधक है मा विरा? उ०- गौतम ! वह निम्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं । प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिये रवाना हुआ किन्तु स्थविरों की सेवा में पहुंचने के पश्चात् वह स्वयं मूक हो जाये तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ? उ०- गौतम ! वह निर्ग्रन्य आराधक है, विराधक नहीं । प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिये रवाना हुआ और स्थविरों की सेवा में पहुंचने के पश्चात् स्थविर मुनि काल कर जाये तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है यश विराधक ? उ०- गौतम ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं। प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिये रवाना हुआ और भी सेवा में पहुंचने के पश्चात् वह स्वयं काल कर जाये तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ बाराधक है या विराधक ? उ०—गौतम ! वह निर्ब्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं । इसी प्रकार उच्चार प्रत्रवन भूमि या स्वाध्याय भूमि के लिए बाहर निकले हुए निर्णय के भी ये आठ बालापक कहने चाहिये । इसी प्रकार आठ आवश्यक कहने चाहिये । धाम विहार करते हुए निर्धन्य के भी जिस प्रकार निन्म के तीन गमक (२४ आलापक) कहे वैसे ही निम्मी के भी तीन गमक कहने चाहिये। प्र० - भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है कि वे आराधक हैं, विराधक नहीं ? उ०- गौतम ! जैसे कोई पुरुष विशाल मात्रा में भेड़ के बाल, हाथी के रोम, सण के रेशे, कपास के रेगे, अथवा तृण समूह के दो, तीन या संख्यात टुकड़े करके भाग में डाले तो है गौतम ! कांटे जाते हुए वे काटे गए, अग्नि में डाले जाते हुए वे डाले गए या जलते हुए जल गए, इस प्रकार कहा जा सकता है ? - ( गौतम स्वामी) हो भगवन 1 काटते हुए वे काटे गए - यावत् जलते हुए वे जल गए यों कहा जा सकता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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