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चरणानयोग २
विराधक का स्वरूप
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२० से नृणं ते! एवं मणं पारेमाणे एवं परेमागे, एवं चिट्टेमागे एवं संवरेमाणे आणाए आराहए भवति ?
उ०- हंता गोयमा 1 एवं मणं धारेमाणे - जाब- आराहए भवद्द | — वि. स. १, उ. ३ सु.
६
विराग स
३०२. अम्मी तुम सिनाम वाले आरंभट्टी अनुबधमा 'पार्थ' पारमाणे हया समागमाणे धीरे मेजोरि हतिनं माणाए ।
तत्रो पच्छा पेरा जति आलोस्वामि-जा तीकम्मं परिवरिसानि ।
सेव संपनसंपत्ते बेरा अासिया, सेणं भंते! कि बारहए विराहए ?
एस बसवित वि
- आ. सु. १, अ. ६, उ. ४, सु. १६२ कहा जाता है । आराहूगा जिया-निग्गयोओ
३०३. १० --- निगांथेण य गाहाबडकुलं पिडवापपडियाए पविद्वेणं अरे अकिञ्चट्टाने पडिसेबिए, तस्स गं एवं भवति इहेब ताद अहं एयस्स ठाणस्स आलोएमि, पश्चिक्क मामि निरामि गरिहामि, विउट्टामि, विसोहेमि अकरणयाए अबमुटु भि, अहारिहं पायच्छितं तवोकम्मं विज्जामि,
उ०- गोयमा ! माराहए, नो बिराइए
प० - सेय संपट्टिए असंपते अपणाय पुत्रामेव अमुहे सिया से णं भंते! कि आराहए, बिगहए ?
उ०- गोधना ! आराहए, न बिराए !
० से संपट्टिए असंपले घेरा य का करेक्जा से ते कि आराहए विराहए ?
उ०- गोवमा ! आराहए, नो विराहए ।
सूत्र ३०१-३०३
प्र० - हे भगवन् ! क्या इस प्रकार मन में धारण करता हुआ, आचरण करता हुआ रहता हुवा और संवरण करता हुवा प्राणी वीतराग की आशा का आराधक होता है ?
उ०- हीं गौतम ! इस प्रकार मन में धारण करता हुआ - यावत् - आज्ञा का आराधक होता है। विराधक का स्वरूप
२०२. धर्मसाधक को आचार्यादि इस प्रकार अनुपासित करते है तूं अधर्मार्थी है. बाल-अक्ष है, बारम्वार्थी है, तूं इस प्रकार कहता है कि 'प्राणियों का वध करो' अथवा तूं स्वयं प्राणीवध करता है और प्राणियों का वध करने वाले की अनु मोदना करता है । 'भगवान् ने दुष्कर धर्म का प्रतिपादन किया है' ऐसा कहकर तूं उनकी आज्ञा का अतिक्रमण कर उपेक्षा करता है |
ऐकामभोगों के कीचड़ में लिप्त और हिंसक
बाराक निर्दग्ध-निधी
३०३ - गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट निर्ग्रन्य द्वारा किसी अकृत्य स्थान का प्रतिसेवन हो जाए और उसके मन में ऐसा विचार आवे कि "मैं यहीं पर इस अकृत्य स्थान की आलोचना, प्रतिक्रमण निन्दा और गर्दा करू", उसके अनुबन्ध का छेदन करू, इससे विशुद्ध बनूं पुनः ऐसा अकृत्य न करने के लिए प्रतिज्ञाबद्ध हो और ययोचित प्रायथित रूप तप कर्म स्वीकार करूँ,
उसके बाद स्थविरों के समीप में आलोचना करूंगा यावत्तप कर्म स्वीकार ना",
ऐसा विचार कर वह निग्रन्थ स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुआ, किन्तु स्थविर मुनियों के पास पहुंचने से पहले ही हो जाएँ (बोनस अर्थान् प्रायश्चित न दे सकें। तो हे भगवन् ! वह निर्ब्रम्य आराधक है या विराधक है ?
उ०- गौतम ! वह निर्बंध आराधक है, विराधक नहीं । प्र ० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुमा किन्तु उनके पास पहुंचने से पूर्व ही स्वयं सूक हो जाए तो हे भगवन् ! यह निम्ब आराधक है या विशयक ?
उ०- गौतम ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं। प्र० - स्थविर मुनियों के पास जाने के लिए रवाना हुआ किन्तु उसके पहुँचने से पूर्व ही स्वर निकाल कर जाएँ तो हे भगवन् ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है या विराधक ?
उ०- गौतम ! वह निर्ग्रन्थ आराधक है, विराधक नहीं ।