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________________ १२४] परणामुयोग-२ प्रस्थास्थानका स्वयउसके करण योगों के भंग पूर्व २९६ .. बाबा मकरस, करमा काभसा । (e) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, करते हुए का अनु मोदन करता नहीं, काया से । (२०-२८) (७) एगविहं तिविहेणं पक्किममाणे, ७. जब एक करण तीन योग से अतिक्रमण करना है, तब१. न करेति मणमा वयसा कायसा, (१) स्वयं करता नहीं, मन, वचन और काया से । २. अहवा न कारह मणसा पयसा कायसा, (२) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन, वचन और काया से। ३. अहवा करेंसं नाणुजाणति मगसा वयसा कापसा। (३) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन, वचन और काया से। (२९-३१) (८) एस्कविहं दुविहेणं पडिक्कममाणे १.जब एक करण दो योग से प्रतिक्रमण करता है, तब१. न करेति मणसा मसा, (१) स्वयं करता नहीं, मन और वचन से, २. अल्वा न करेति मणसा कायसा, (२) अथवा स्वयं करता नहीं, मन और काया से, ३. अहबा न करेइ वयसा कश्यसा, (३) अथवा स्वयं करता नहीं, वचन और काया से, ४. अहवा न कारवेति मणसर वयसर, (४) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन और वचन से, ५. अहवा न कारवेति मणसा कायसा, (५) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन और काया से, ६. अहवा न कारवे वयसा कायसा, (६) अथवा दूसरों से करवाता तहीं, वचन और काया से, ७. अहवा करेंत नाणुजाणइ मणमा वयसा, (७) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन और वचन से, 4. अहवा करेंतं नाणुजाण मणसा कापसा, (4) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन और काया से, ६. अहवा फरेंत नाणुजाणइ वयसा कायसा। (E) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन और काया से । (३२-४०) (8) एमकविहं एगविहेणं पडिफममाणे ६. जब एक करण एक योग से प्रतिक्रमण करता है, तब१.न करेति, मणसा, (१) स्वयं करता नहीं, मन से, २. अहवा न करेति वयसा, (२) अथवा स्वयं करता नहीं, बचन से, ३. अहवा न करेति कायसा, (३) अथवा स्वयं करता नहीं काया से, ४. अहवा न कारवेति मगसा, (४) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, मन से, ५. अहवा न कारवेति वयसा, (५) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, वचन से, ६. अहवा न कारवेति कायसा, (६) अथवा दूसरों से करवाता नहीं, काया से, ७. अहवा करेंतं नाणुजाणा मगसा, (७) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, मन से, ८. अहवा करतं नरगुजाणइ वयसा, (6) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, वचन से, ९. अहवा करेंतं नाणुजागा कायसा। (8.) अथवा करते हुए का अनुमोदन करता नहीं, काया से । (४१-४६) प०-पप्पन्न संवरमाणे कितिविहं संबरेह-जाव-एगविहं -हे भगवन् ! वर्तमानकालीन संवर करता हुआ, एगविहेणं संबरे? श्रावक क्या तीन करण तीन योग से संवर करता है--यावत् एक करण एक योग से संवर करता है? उ.---एवं जहा परिक्कममाणेणं एगणपणं भंगा, भणिया उ०-जिस प्रकार प्रतिकमण सम्बन्धी ४६ भंग कहे उसी एवं संघरमाणेण बि एगणपण्णं भंगा भाणियब्बा। प्रकार संपर सम्बन्धी ४६ मंग कहने चाहिये । ५०–अगागय पच्चक्खमाणे किं तिविहं तिषिहर्ग पच्चालाइ प्र०-हे भगवन् ! भविष्यत काल का प्रत्याख्यान करता -जाव-एगविहं एगविहेणं पच्चसाइ? हुआ थावन क्या तीन करण तीन योग से प्रत्याख्यान करता है -यावत्-एक करण एक योग से प्रत्याभ्यान करता है ?
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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