________________
सूत्र २७६-२७६
स्यूल-मृषावाव-विरमग-व्रत का स्वरूप और अतिचार
गृहत्य धर्म
[१०६
थूल-मुसाबायविरमणस्स सहवं अइयाराय
स्थूल-मृषावाद-विरमण-व्रत का स्वरूप और अतिचार२७६. धूलगमुसावा समणोवासओ पञ्चक्खाइ। सेब पुसावाए २७६. श्रमणोपासक स्थूलमृषावाद का प्रत्याख्यान करता है । वह पंचविहे पन्नते, तं महा
मृषाबाद पांच प्रकार का कहा गया है । जैसे - १. कन्नालीए.
(१) कमा सम्बन्धी मृषावाद, २. गोवालीए,
(२) गाय आदि पशु सम्बन्धी मृषावाद, ३. भोमालीए. ४. नासाबहारो,
(३) भूमि सम्बन्धी मृषावाद, (४) धरोहर का अपहरण, ५. कूडसंविखजले।
(५) कूट साक्षी अर्थात् शूठी साक्षी । बुलगमुसावायवेरमणस्स समणोवासएक पंच अइयारा जाणि- श्रमणोपासक को स्थलमृषावादविरमण व्रत के पांच प्रमुख यस्वा न समायरियम्वा ।
अतिचार जानना चाहिए, उनका आचरण नहीं करना चाहिए । तं जहा
वे इस प्रकार हैं१. सहसाझमक्खाणे,
(१) सहसा (बिना विचारे) झूठा कलंक लगाना, २. रहस्साकमक्खाणे,
(२) एकान्त में मन्त्रणा करने वालों पर आरोप लगाना । ३. सबारमंतभेए,
(३) स्थी की गुप्त बातें प्रगट करना। ४. मोसोयएसे,
(४) मिथ्या उपदेश देना या खोटी मलाह देना । ५. कूडलेहकरणे'। -आव. अ. ६.सु. ६८-६६ (५) असत्य लिखावट करना। थूल-अवत्तादाण-विरमणस्स सरूवं अइयारा य
स्थूल-अदरसादान-विरमण-व्रत का स्वरूप और अतिचार२७७. थूलगअवसादागं समणोवासओ पच्चयाई । से य अवत्ता- २७६. श्रमणोपामक स्थूल अदत्तादान का प्रत्याख्यान करता है। दाणे दुबिहे पालते, त जहा
यह अदत्तादान दो प्रकार का कहा गया है। जैसे --- १. सचित्तादत्तादाणे य,
(१) सचित्त अदत्तादान, २. अविसावत्तावाणे य।
(२) अचित्त अदत्तादान, थूलग अदिग्णादाणवेरमणस्स समणीबासएणं इमे पंच अद- श्रमणोपासक को स्थूल अदतादानविरमण व्रत के पाँच यारा जाणियल्वा न समायरियब्धा । तं जहा
प्रमुख अतिचार जानना चाहिए उनका आचरण नहीं करना
चाहिए। वे इस प्रकार है१. सेणारी,
(१) चोरी की वस्तु लेना, २. तक्करप्पओगे,
(२) चोर को महायता देना, ३. विद्य-रज्जाइक्कमणे,
(३) राज्य-विन्द्र का करना, ४. कूबतुल्ल-फूलमाणे,
(४) झूठा तोल व माप करना, ५. तप्पाजश्वववहारे। -आव. अ. ६. सू. १०-११ (५) अच्छी वस्तु दिखाकर बराव देना। चुल-मेहण-विरमणस्स सरूवं अइयारा य ।
स्थूल-मैथुन-विरमण-वत का स्वरूप और अतिचार२७८. परदारगमण समणोवासओ पच्चरखाइ, सवारसंतोसंवा पडि- २७८. श्रमणोपासक परस्त्रीगमन का प्रत्यास्यान करता है और बज्जई।
स्वदारा से संतोष करता है। से व परदारगमणे विहे पत्ते, जहा
परस्त्रीगमन दो प्रकार का कहा गया है । जैसे१. ओरालिय-परदारगमणे य, २. वेउध्विय-परदारगमणे पा (१) औदारिक परस्त्रीगमन, (२) वैश्यि परस्त्रीगमन । सदार-संतोसस्स समणोवासएक इमे पंच अइयारा जाणियच्या श्रमणोपासक को स्वदारसंतोष-व्रत के पांच प्रमुख अतिचार न समायरियडवा, तं जहा
जानना चाहिए उनका आचरण नहीं करना चाहिए। वे इस
प्रकार हैं-- १. इत्तरियपरिग्गहियायमणे,
(१) अल्प वय वाली स्त्री के साथ गमन करना,
१
उया. अ. १. सु. ४६ ।
२
स्वा. अ. १, सु. ४७ ।