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वरणानुयोग-२
धावक धर्म के प्रकार
सघ २७४.२७५
समणोवासगधम्मप्पगारा २७४. अगारधम्म दुवालसविहं आइक्खा, तंजहा
श्रावक धर्म के प्रकार२७८. भगवान् ने श्रावक-धर्म बारह प्रकार का बतलाया है
यथा
पंच अणुब्बयाई, तिण्णि गुणव्दयाई, सारि सिपसावयाई । पाँच अणुनत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाप्रत । पंच अणुब्बया तं जहा
पांच अणुव्रत इस प्रकार है१. थूलामो पाणाइवायाओ वेरमणं,
(१) स्कूल प्राणातिपात से निवृत्त होना, २. यूलाओ मुसावायाओ वेरमण,
(२) स्थूल मृषावाद से निवृत्त होना, ३. बुलाओ अदिण्णावाणाओ देरमगं,
(३) स्थूल अदनादान से निवृत्त होना, ४. सवारसंतोसे,
(४) म्वदार संतोष करना, ५. छापरिमाणे
(५) इच्छा का परिमाण करना 1 तिणि गुणम्बयाई तं जहा
तीन गुणवत इस प्रकार हैं६, दिसिम्वयं,
(६) दिग्बत दिशा का परिमाण करना, ७. उवमोगपरिमोगपरिमाण,
(७) उपभोग-परिभोग का परिमाण व्रत, ५. अणत्थदंडवेरमणं ।
(८) अयंदण्ड से निवृत्त होना। चत्तारि सिपखावपाई, तं जहा
चार शिक्षावत इस प्रकार हैं ६. सामाइयं, १०. देसावगासियं.
(8) सामाश्रिक त्रत. (१०) देशावकाशिक व्रत, ११. पोसहोववासे, १२. अतिहित विभागे। (११) पोषधोपवारा प्रत, (१२) अतिथि-रात्रिभाग ब्रत । अपच्छिमा मारणतिया सलेहणालमगाराहणा ।
तथा अन्तिम मरणरूप संलेखना-अनगन की आराधना । अयमाउसो ! अगारसामाइए धम्मे पण्णते । एपस्स धम्मस्स हे आयुष्यमन् ! यह गृहस्थ का आचरणीय धर्म है। इस सिमखाए उबट्ठिए समणोबासए वा समणोवासिया वा विहर- धर्म के अनुसरण में प्रयत्नशील होते हुए श्रमणोपासक या श्रमणोमाणे आणाए आराहए मवई'। - उबा. अ. १, सु. ११ पासिका आमा के आराधक होते हैं। एत्य पुण समणोवासगधम्मे पंचागुम्खयाई सिनि गुणवयाई इस बारह प्रकार के श्रमणोपासक धर्म में पांच अणुव्रत और आयकहियाई चत्तारि सिक्सावयाई इत्तरियाई। तीन मुणवत जीवन पर्यन्त के लिये ग्रहण किए जाते हैं तथा चार
-आर. अ. ६. सु. ६३ शिक्षाव्रत अल्प काल के लिए ग्रहण किए जाते हैं। यूल-पाणाइवाय-विरमणस्स सरूवं अइयारा य
स्थूल-प्राणातिपात - विरमण - व्रत का स्वरूप और
अतिचार२७५. थूलगपाणाहवायं समणोवासो पश्चक्खाइ। से य पाणा- २७५. स्थूल प्राणातिपात का श्रमणोपासक प्रत्याख्यान करता वाए दुविहे पन्नते. तं जहा --
है। वह प्राणातिपात दो प्रकार का कहा गया है । जैसे१. संकप्पओ य, २. आरम्भओ य,
(१) मंकल्प से, (२) आरम्भ से, तस्य समणोबासओ संकप्पो जायज्जीवाए पच्चरवाह, नो उसमें धमणोपासक संकल्प से स्थूल प्राणातिपात का यावआरम्भओ।
ज्जीवन प्रत्याख्यान करता है, आरम्भ से स्यूल-प्राणानिपात का
प्रत्याश्यान नहीं करता है। थूलगपाणाइवायरमणस्स समणोवासएणं इमे पंच अइयारा श्रमणोपासक को स्थूल प्राणातिपात विरमण अत के पांच जागियव्या, न समायरियल्वा । तं जहा
प्रमुख अतिचार जानना चाहिए उनका आचरण नहीं करना
चाहिए । वे इस प्रकार हैं१. बंधे, २. वहे,
(१) बाँधना,
(२) मारपीट करना, ३. छविच्छेए, ४. अइभारे,
(३) अंगोपांग का छेदन करना, (४) अधिक भार लादना, ५. मत्त-पाण-वोच्छेए। -आव. अ. ६, सु. ६६-६७ (५) भोजन पानी बन्द करना ।
१ ३
ठाण. भ.१.उ.१, सु. ३८९ | उवा. २. १, सु. ४५ ।
२
उव. सु. ५७।