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________________ २०१-२७३ P लिखित्ता, गरहिता, अवमाणित्ता अनयरेगं अमगुण्णेणं अपीह-कारण असण-पान-खान-साइमे पढितामेता भवति, इज्तेहि तिहि ठाणेहि जोवा अनुभवोहाय्यसाए कम्म गति । - ठा. अ. ३, उ. १, सु. १३३ (३) सुहवोहार बंध कारणाई२०१. हि लं जहा १. मी पाचे अतिवाता भवति, २. यो बरामद २. समय माहणं या दिशा नानाऐसा सम्माता कहलाणं मंगलं देवयं चेइयं पवासेसा मयुष्णं पीइकारएणं असमान वाइम साइमेनं पडिला भेता भवति । इच्येतेहि तिहि ठाणेहि जीवा सुभवीहाउयताए कम डा. अ. ३ . १ . १३३ (४) ग 1 शुभ दीर्घायु बन्ध के कारण समत्त सरूवं अडवारा ब२७२. से सम्पले सत्य-सम्म मोहणीय-सम्भाणुवेयनोवसम यसमध्ये पस-संपाइल सुहे आप परिणामेतं । १. सं २. वि ५. परपासंसंघ के 12 इन तीन प्रकारों के जीव अशुभ दोघं आयुष्य कर्म का बन्ध करते हैं । शुभ दीर्घायु बन्ध के कारण - जीवा सुभवोहाजलाए कम्मं पति २७१. वीन प्रकार से नीच दीर्घायुष्य कर्म बांचते हैं, यथा--- सम्मत्तस्स समणोवास एवं पंच अइयारा पेयाला जाणियस्वा न समायरियवा तं जहा - २. कंखा, ४. परवापा 陶鐵 समकित सहित बारह व्रत – २ १ विया. श. ५, उ ६. सु १.४ ॥ गृहस्वधर्म आव. अ. ६, सु. ६४-६५ पंचातिचार विसुद्ध अनुययगुणयवाद ि अगय पडिमा विसेसकरमजोगा अपना मारणंतिया सासारामा । - आव. म. ६, सु. ६४ गर्हा और अपमान करने से तथा अन्य अमनोज अप्रीतिकर अमन, पान, साय, स्वाद्य का प्रतिलाभ करने से, खाद्य, [१०७ (१) प्राणों का घात न करने से, (२) मृषावाद न बोलने से, ( ३ ) तथारूप श्रमण माहन को वन्दन - नमस्कार कर, उनका सत्कार सम्मान कर कल्याण-रूप, मंगलरूप, देवरूप तथा ज्ञानवंत मानकर उनकी सेवाभक्ति कर उन्हें मनोश एवं प्रीतिकर अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य आहार का प्रतिलाभ करने से । इन तीन प्रकारों से भी शुभ दीर्घायुष्य कर्मका करते है। सम्यक्त्व का स्वरूप और अतिचार २७२. यह सम्यक्त्व-मोहनीय कर्म के उदय प शम अथवा क्षय से निष्पन्न, सभ संवेग आदि का हेतुभूत एवं आत्मा के शुभ परिणामस्वरूप कहा गया है । (१) (३) विकित्सा (५) पर-पायंड- संस्तव । सम्यक्त्व की प्रधानता समत्त पाहणं २७२. एतस्स पुण समणोबा सगधम्मस्स मूलबरणुं सम्पत्तं । तं २७३. इस श्रमणोपासक धर्म का मूल सम्यक्त्व है। वह सम्यक्त्व निसगोण वा अधिगमेण वा । स्वभाव से या उपदेश से होता है । पाँच अतिचारों से विशुद्ध सम्ययुक्त तत अभिग्रह और अन्य प्रतिमा मादि विशेष करने योग्य धार्मिक आचार वालों को जीवन के अन्त में या मरण समय में कवाय पाक के लिए संलेखना करनी चाहिए। २ उषा. अ. १, सु. ४४ । श्रमणोपासक को सम्यक्त्व के पाँच मुख्य अतिचार जानने योग्य हैं आचरण करने योग्य नहीं हैं। वे अतिचार इस प्रकार हैं (२) कक्षा (४) पर-पार्थसा
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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