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________________ १०२] चरणानुयोग-२ हानपूर्वक प्रत्यारपान करने वाले सूत्र २५२-२५३ णाणपुरवगपच्चक्खाणकारी . शानपूर्वक प्रत्याख्यान करने वाले२५२. चत्तारि पुरिसजाया पणत्ता, तं जहा . २५२. पुरुष च.र प्रकार के कहे गये हैं, यथा१.परिणायकम्मे नाममेगे नो परिणायमणे, (१) कुछ पुरुष पाप कर्म का तो परित्याग कर देते हैं, किन्तु पाप भावना का त्याग नहीं कर पाते। २ परिणायसणे नाममेगे नो परिणायकम्मे, (२) कुछ पुरष पाप भावना का तो परित्याग कर देते हैं. किन्तु पाप कर्म का परित्याग नहीं कर पाते। ३. एगे परिण्णायकम्मे वि, परिणायसाणे वि, (३) कुछ पुरुष पाप कर्म और पाप भावना दोनों का परि त्याग कर देते हैं। ४. एगे ना परिचायकम्मे, नोकरभाससम्म । (४) कुछ पुरुष न पाप कर्म करना छोड़ते हैं और न पाप भावना का परित्याग करते हैं। चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा पुरुष चार प्रकार के होते हैं मथा१. परिण्णायकम्मे नाममेगे नो परिष्णायनिहावासे, (१) कुछ पुरुष पाप कर्म का परित्याग कर देते हैं किन्तु गृहवास का परित्याग नहीं करते। २. परिणायगिहावासे नाममेगे नो परिणायकम्मे, (२) कुछ पुरुष गृहवास का तो त्याग कर देते हैं किन्तु गु . वास के कार्यों का परित्याग नहीं कर पाते । ३. एगे परिण्णायकम्मे वि परिष्णायपिहावासे वि, (३) कुछ पुरुष पाप कर्म और गृह्यास दोनों का परित्याग कर देते हैं। ४. एगे गो परिष्णायकम्मे गो परिम्यायगिहावासे । (४) कुछ पुरुष पाप कर्म और गृहवास दोनों का परित्याग नहीं कर पाते। चत्तारि पुरिसजाया पण्णता, तं जहा-- पुरुष चार प्रकार के होते हैं, यथा-- १. परिण्णायसम्णे नाममेगे नो परिण्णायगिहावासे, (१) कुछ पुरुष पाप भावना का परित्याग कर देते हैं किन्तु गृहवास का परित्याग नहीं करते । २. परिणायगिहाबासे नाममेगे नो परिणायसम्णे, (२) कुछ पुरुष गृहवाम का त्याग कर देते हैं, किन्तु पाप भावना का त्याग नहीं करते । ३. एगे परिणायसपणे विपरिषणायगिहावासे वि, (३) कुछ पुरुष पाप भावना एवं गृहवास दोनों का परित्याग कर देते हैं। ४. एगे नो परिणायमण्णे नो परिणायगिहावासे । (४) कुछ पुरुष पाप भावना एवं गृहवास दोनों का परित्या -ठाणं. अ. ४, उ. ३, सु. ३२७ नहीं कर पाते । प्रतिक्रमण फल-६ पडिक्कमण फलं प्रतिक्रमण का फल२५३. १०-पडिक्कमणं मन्ते ! जीये कि जणयह ? २५३. प्र-भन्ते ! प्रतिक्रमण से जीव क्या प्राप्त करता है ? - उ०-परिक्कमणेगं बयछिद्दाई पिहेई। पिहियवयछिदे पुण ३०-प्रतिक्रमण से वह प्रत के छिद्रों को ढक देता है। जौवे निवासवे, असबलचरित्ते, असु पवयणमायासु जिसने व्रत के छेदों को भर दिये वह जीव आश्रवों को रोक देता उवउत्ते अपुहते सुप्पणिहिए बिहरह। है, चारित्र छिटों को मिटा देता है, पाठ-प्रवचनमाताओं में सात्र-उत्त. अ. २६, सु. १३ धान हो जाता है, संयम में एकरस हो जाता है और भली-भांति समाधिस्थ होकर विहार करता है।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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