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________________ सत्र २०६-२०८ वर्षावास में पात्र और वस्त्र ग्रहण करने का प्रायश्चित्त सूत्र संथभी जीवन [७५ पढमसमोसरणे पत्त-चीवर-गहण पायर्याछत्त सूत्तं वर्षावास में पात्र और वस्त्र ग्रहण करने का प्रायश्चित्त २०६. जे भिक्यू पढ़म-समोसरणुदेसे पत्त-चीवराई पहिगाहेर २०६, जो भिक्षु चातुम सि में पात्र और वस्त्र ग्रहण करता है, पजिग्गाहेंतं वा साइजद। ____ करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवम्जइ चाउम्मासियं परिहारदाणं अणुपयाइर्य। उसे चातुर्मालिका अनुघातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) -नि.उ. १०, सु. ४५ आता है। बासायासे वत्थ आतावण विहि-णिसेहो वर्षावास में वस्त्र सुखाने के विधि-निषेध२०७. वालावास पज्जोसविए भिषय इशिछष्मा वरवं वा, पडिगह २०७, वर्षावास में रहा हुआ भिक्षु यदि वस्त्र, पात्र, कम्बल, वा, कंबलं या, पापपुंछणं वा अण्णरि वा उहि आयाक्त्तिए पादपुंछनक या किसी प्रकार की उपधि को धूप में थोड़ी देर या वा, पयावित्तए वा । नो से कप्पड एग वा, अणेग वा अधिक देर तक सुखाना चाहे तो एक या अनेक भिक्षुओं को अपरिणवित्ता सूचित किए बिना, १. पाहावाकुलं भत्ताए या, पाणाए षा, निक्खमित्तए पा, (१) गृहस्थों के घरों में आहार-पानी के लिए निष्कमण पविसिसएगा। प्रवेश करना, २.असणं बा-जाब-साइम वा आहारित्तए । (२) अशन-यावत्-स्वाध का आहार करना । ३. मलिया विटामिन (३) उपाश्रय के बाहर स्वाध्याय स्थल में जाना या, ४. जियारभूमि वा निहरितए, (४) मल-भूत्र त्यागने के स्थान में जाना। ५. समायं वा करितए, (५) स्वाध्याय करना, ६.काउस्सगं वा, (६) कायोत्सर्ग करना, ७. ठाणे वा ठाइत्तए। (७) ध्यान करना नहीं कल्पता है । अश्षि य इस्थ के अभिसमण्णागए अहासण्णिहिए एगेवा, यदि वहाँ पर आये हुए या समीप बैठे हुए एक या अनेक अणे वा कप्पड से एवं बहसए मुनि हों तो उन्हें इस प्रकार काहना कल्पता है"इमं ता अज्जो | तुम मुहत्ता जाणेहि-जाव-ताव अहं, "हे आय ! धूप में सुखाये हुए इन उपकरणों का मुहूर्त गाहावइकुल भत्ताए या पाणाए वा निक्वमित्तए वा पवि- पर्यन्त ध्यान रखना जब तक कि मैं गृहस्थों के घरों में आहार सिलए वा-जाव-काउस्सगं वा ठाणं वा ठाइत्तए।" पानी के लिए निष्क्रमण प्रवेश करूं,-यावत्-कायोत्सर्ग या ध्यान करू'। ते य पडिसुणेज्जा, एवं से करपई-जाव-ठाणं वा ठाइत्तए। यदि वे स्वीकार कर लें तो उसे कल्पला है-यावत्-ध्यान करना। है य गो पविणेजा, एवं से नो कप्पई-जाव-काणं वा यदि वे स्वीकार नहीं करें लो उसे नहीं कल्पता है-यावत्ठाइत्तए। --दसा. ६. ८, सु. ६६ ध्यान करना। उच्चार-पासवण भूमि पडिलेहणा उच्चार प्रस्रवण भूमि प्रतिलेखना२०८. वासावास परजोसवियाणं कप्पड निम्नथाण वा, निग्गंधोग २०८. वर्षावास रहे हुए निम्रन्थ निन्थियों को तीन उच्चार था तो उरचार-पासवण भूमिओ पडिलेहित्तए, तं जहा प्रस्त्रवण भूमियों की प्रतिलेखना करना कल्पता है । हेमन्त और हेमंत-गिम्हासु, जहा पं वासासु । ग्रीष्म ऋतु में तीन उपचार प्रस्रवण भूमियों की प्रतिलेखना करना वर्षाकाल के समा। आवश्यक नहीं है। प-से किमाह मते ! प्र-हे भगवन् ! आपने ऐसा क्यों कहा? उ-बासातु णं उस्सपणं पाणा य, तणा य, बीया य, पणगा उ.-वर्षा ऋतु में प्रायः सर्वत्र पस प्राणी, हरी घारा, बीज, य, हरियाणि य भवति । -दसा. द.८, सु. ६८ फूलग और हरे अंकुर पैदा हो जाते हैं ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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