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________________ ७४] चरणामुयोग-२ राध्या एवं आसन ग्रहण करने का विधान सूत्र २०४-२०५ सेज्जासण गहण विहाणं शय्या एवं आसन ग्रहण करने का विधान२०४. वासावासं पज्जोसधियाणं नो कम्पइ निग्गंधाण बा, २०४. वर्षावास रहे हुए निर्यन्य-निर्ग्रन्थियों को शय्या और आसन निपथीण वा अणभिग्गहिय सिज्जासणियाणं हत्तए। ग्रहण किए बिना रहना नहीं कल्पता है। आयाणमेयं शय्या और आसन नहीं रखना फर्म बन्ध का कारण है। क्योंकि, १. अणमिम्गहिय सिज्जासणियस्स, (१) शय्या और आसन नहीं ग्रहण करने वाले, २. अणुमचाकुछ यस्त, (२) एक हाथ से नीचा और चू करने वाला शय्या और आसन रखने वाले । ३. अणटाबंधियस्स, (३) हिलने वाले शय्या और मासन रखने वाले, ४. अमियासगियस्स, (४) परिमाण से अधिक शय्या और आसन रखने वाले, ५. अशातावियस्स, (५) यथासमय शय्या और आसन को धूप में नहीं सुखाने वाले। ६. असमियस्स, (६) एषणा समिति के अनुसार शय्या और आसन नहीं लेने वाले । ७. अभिदखणं अभिक्खणं अपडिलेहणासोबस्स, (७) शव्या और शासन की बार-बार प्रतिलेखना नहीं करने वाले तथा, ८. अपमज्मणासीलस्स, तला तहा संजमे चुराराहए मवह । (4) शया और आसन की प्रमार्जना नहीं करने वाले भिक्ष का संयम दुराराध्य होता है। अणायाणमेय किन्तु शय्या और आसन रखना कर्मबन्ध का कारण नहीं है । क्योंकि १. अभिग्यहिय सिज्जासपियस्स, (१) शय्या और आसन ग्रहण करने वाले, २. उच्चाकुदयस्स, (२) एक हाथ ऊँचा और चूं चूं नहीं करने वाला शय्यासन रखने वाले, ३. अट्टाबंधियस्स, (३) नहीं हिलने वाले शय्यासन रखने वाले, ४. मियासणियस्स, (४) परिमाण युक्त शय्या आसन रखने वाले, ५. आयावियस्स, (५) यथासमय शय्या और आसन को धूप में देने वाले, ६. समियम, (६) एषणा समिति के अनुसार शम्या और आसन लेने वाले, ७. अभिक्षण अभिक्खणं पजिसेहणासीलस्स, (७) शय्या और मासन की बार-बार प्रतिलेखना करने वाले तथा ८. पमज्जणासीलस्स तहा तहा संजमे सुआराहए भवद । () शय्या और आसन की प्रमार्जना करने वाले भिक्षु का -दसा. ६.८,सु. ६७ संयम सु-आराध्य होता है। तिणि मत्तगगहण-विहाणं तीन मात्रक ग्रहण करने का विधान-- २०५. वासावासं पऊजोसविधाणं कम्पा निम्याण पा, निगंधीग २.५, वर्षावास रहे हुए निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों को तीन मात्रक ग्रहण या तओ मत्तगाई गिरिहत्तए, तं जहा~ करने कल्पते हैं, यथा१. उच्चार-मसए, २. पासवण-मत्तए, (१) मल त्यागने का पात्र, (२) मूत्र त्यागने का पात्र, ३. खेल-मत्तए । -इसा.द.८, सु. ६१ (३) कफ त्यागने का पात्र ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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