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________________ सूत्र २०२-२०३ आचार्यावि से पूछकर पादपोपगमन करने का विधान संयमो जीवन [७३ आयरियाइएहि आपुच्छित्ता पाओवगमणकरण विहाणं- आचार्यादि से पूछकर पादपोपगमन करने का विधान२०२. वासायासं पम्जोसविए भिक्खू इच्छिाजा अपच्छिम-मार- २०२. वर्षावास रहा हुआ भिक्षु मरण-समव समीप आने पर गंतिय-संलेहणा-सूसणा मूसिए, भत्त-पाण-पडियाइपिखए, संलेखना द्वारा कम तय करना चाहे. आहार पानी का त्याग पाओवगए, अणवस्खमाणे विह रित्तए वा, करके कटे हुए वृक्ष के समान रहकर मृत्यु की कामना नहीं करता हुआ रहना चाहे, निक्खमित्तए वा, पविसिसए था। उपाश्रव से निष्क्रमण-प्रवेश करना चाहे, असगं वा-जाव-साइमं वा आहारितए, अशन-यावत् -स्वाध का आहार करना चाहे, उपचारं वा, पासवणं वा, परिद्वावित्तए, मल-मूत्र त्यागना चाहे, समझायं वा करिसए. स्वाध्याय करना चाहे, धम्मजागरियं वा जागरित्तए। और धर्म जागरणा करना चाहे तो, नो से कप्पद अणापुच्छिता आयरियं वा-जाव-गणावच्छेययं आचार्य-यावत् -गणावच्छेदक अथवा जिनको अगुआ वा, जंचवा पुरओ कार्ड बिहारद । मानकर विचर रहा हो उन्हें पूछे बिना उक्त कार्य करना नहीं काल्पता है। कम्पह से आपुग्छिता आयरियं वा-जाव-गणावच्छेपयं वा, किन्तु आचार्य-यावत्-गगावणेदक को अथवा जिनको जंछ वा पुरओ कार्ड वितरह । अगुआ मानकर विचर रहा हो, उन्हें पूछकर करना कल्पता है। (जाजा लेने के लिए भिक्षु इस प्रकार रहे ) "इच्छामि गं मंले ! सुबभेहि अभणणाए समाणे अपतिम- "हे भगवन् ! आपने आज्ञा हो नो मरण गमय समीप आने मारणंतिय सलेहणा-सूसणा सिए-जाव-धम्मजागरियं वा पर संलवना द्वारा कर्मक्षय यावत्-धर्म जागरणा करता जागरितए।" चाहता हूँ।" हे व से वियरिज्जा, एवं से कप्पइ अपच्छिम-मारणतिय- यदि वे आज्ञा दें तो गरण समय समीप आने पर संलेखना संलेहणा-सूसणामूसिए-जान-धम्मनागरियं वा जागरिसए। द्वारा वर्मय-यावत्-धर्मजामरगा करना बाल्पता है। ते य से नो वियरेग्जा एवं से नो कम्पद अप-छिम-मारणं- यदि वे आज्ञा न दें तो मरण समय समीप आने पर संलेसिय-संलेहणा-असणा मूसिए-जान-धम्मजागरियं वा जाग- खना द्वारा कर्मश्नय --यावत् -धर्मजागरणा करना नहीं रितए। कल्पता है। प०-से किमाह मंते ? हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है। उ.-आयरिया पन्चवायं आगति । आवार्यादि आने वाली विध्न-बाधाओं को जानते हैं । -दसा. ६.८, सु. ६५ वर्षावास सम्बन्धी प्रकीर्णक-समाचारी–५ तिण्हं उवस्सयाणं ग्रहण-विहाणं तीन उपाययों के ग्रहण का विधान२०३. घरसावासं पज्जोसतियाण निगंधाण वा निमांधीण वा २०३. वर्षावास रहे हुए निन्थ-निर्ग्रन्थियों को सीन उपाश्रय तओ उपस्सया गिहिप्सए, ग्रहण करना चाहिए। वे कुम्विया पविलेहा, साहजिया समजणा। दो उपाययों की केवल अनिलेवना करना नथा प्रनिदिन -दसा.द. सु.७३ उपयोग में आने वाले उपायय की प्रमार्जना करना ।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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