SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 157
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र १६६-१७२ उपसंहार संयमी जीवन [१३ पारिय-काउस्सम्यो, बन्वित्ताण तमो गुच। कायोत्सर्ग पारित होने पर (जिन संस्तव करके) मुनि गुरु तवं संपविजेता, कुज्जा सिद्धाण संथ ।। को वन्दना करे। फिर सप को स्वीकार कर सिद्धों की स्तुप्ति -उत्त. अ. २६, गा. ४७-५१ (गमोत्गुणं का पाठ करे । उवसंहारो उपसंहार१७०. एसा सामायारी, समासेण विवाहिया। १७०. यह समाचारी मैंने संक्षेप में कही है। इसका आवरण जं चरिता बहु ओवा, तिष्णा संसार सागर ।। कर बहुत से जीव संसार सागर से तिर गये। • ति बेमि। -ऐसा मैं कहता है: -उत्त. अ.२६, गा.५२ वर्षावास समाचारी–२ वासावासे संपत्ते विहार गिसेहो वर्षाकाल आ जाने पर विहार का निषेध१७१. अभुवगते खलु वासावासे अभिपवट्ठे, बहते पाणा अभि- १७१. वर्षाकाल आ जाने पर वर्षा हो जाने से बहुत से प्राणी संभूया, यहवे बीया अहणुकिमण्णा, अंतरा से मग्गा बहुपाणा उत्पन्न हो नये हों, बहुत से वीज अंकुरित हो गये हों, मार्ग के जाव-मक्फडा-संताणगा, अणभिक्कता, पंथा, णो विणाया बीच में बहुत से जीव जनते हों - यावत् --मकड़ी के जाले हो मागा, सेवं गला गो गामाणुगाम दम्गेज्जा, ततो गये हों, वर्षा के कारण मार्ग चलने योग्य न रहे हों या मार्ग का संजयामेव वासायासं उल्लिएज्जा । पता नहीं चलता हो, ऐसी स्थिति जानकर साघु एक ग्राम से - आ. सु. २, अ. ३, ज. १, सु. ४६४ दूसरे ग्राम को विहार र करे। अपितु यतनापूर्वक वर्षावास व्यतीत करे। वासावास-अजोग्गं खेत्तं वर्षावास के अयोग्य क्षेत्र१७२. से मिक्खू वा भिक्खूणी वा से ज्ज पुण जाणेज्जा गाम था १७२ वर्षायास करने वाले भिक्षु या भिक्षुषी उस ग्राम-पावत्-जाव-रायहाणि वा, राजधानी की स्थिति जाने किइमंसि खलु गामंसि वा-जाव-रायहाणिसि वा गो महती इस ग्राम-यावत् -राजधानी में स्वाध्याय करने योग्य विहारमूमि, णो महती विया रभूमि । विशाल भूमि नहीं है, मल-मूत्र त्यागने के लिए योग्य विशाल भूमि नहीं है। जो सुलभे पीट-फलग-सेज्जा संथारए णो सुखभे फासुए-ऊंछे चौकी, पाटे, शय्या एवं संस्तारक की प्राप्ति भी सुलभ नहीं अहेसणिक, है और न प्रासुक निर्दोष एवं एषणीय आहार पानी ही सुलभ है । बहवे अस्थ समण-माहण-असिहि-किवण-वणीमगा-उवागता, जहाँ बहुत से धमण, ब्राह्मण, अलिथि, दरिद्री और भिखारी उवागमिस्संति य, अन्चाइण्णा-वित्ती, जो पण्णस्स णिकाखमण लोग पहले से आए. हए हैं और भी दूसरे आने वाले हैं, जिससे पोसाए-जाद धम्माणुओग-चिताए। मांगने वालों की अत्यन्त भीड़ रहती है, प्रज्ञावान साधु-साध्वी को वहाँ निकलना और प्रवेश करना-यावत् - धर्मचिन्तन करना उपयुक्त नहीं हो सकता है। . सेवं गच्चा तहप्पगार गाम बा-जाव-रायाणि वा णो यह जानकर ऐसे ग्राम-यावत्-राजधानी में वर्षावास बासावासं उल्लिएज्जा। न करे । -आ. सु. २, अ.३, उ. १, मु. ४६५ १ नो कप्पड पिगंधाण वा णिगंथीण वा वासावासासु चारए । .... कप्प. उ. १, सु. ३७
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy