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रेणानुयोग- २
गिद्दासीलो पावसमणो
१९५.
पाए निहासोले
भोच्या पेन्वा मुहं सुघड़, पावसमणि त्ति बच्चई -उ. अ. १७.३
राईय समाया
१६६. रति पिचउरो भागे भिक्खू कुज्जा विक्खणो । लओ उत्तरपुर्ण कुआ, सहभाि पढमं पोरिसि सज्झायं, बोयं साणं शिवाय
तथा निमोक्खं तु चउत्थो भुज्जो वि सज्झायं ॥
- उत्त. अ. २६, 19-25
राईय पोरिसी विष्णाण
१६७. जं ने जया ति नक्तं तंमि नह चराए । संपत्ते विरमेज्जा, सम्झायं पओस-कालमि ||
तम्मेव य नक्खत्ते, गयण- चउदभाग- सावसेसंमि । रलिपि का पत्रलेहिता भूमी कुणा ॥
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- उ. अ. २६, गा. १६-२०
।
राईय चत्थीए पोरिसीए समायारी १६०. "पोरसीएचस्पी का तु पहिलेहिया | कालं सज्झायं तओ कुज्जा, अबोहतो असंजए ॥ पोरिसीए उमाए forefer कालee कालं तु पडिलेहए ||
।
उत्त. अ. २५, गा. ४३ ।
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आगए काय-वोसो, सध्या-विम काम्यं तओ कुज्जा, सभ्य दुक्ख- -विमोक्त्यणं ॥
- उत्त. अ. २६. मा. ४४-४६
राईय पडिक्कमण समायारी
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१६. इयं च अईयारं विन्तिज्ञ्ज अणुपुब्वसो । नामि समि परिमितभि पारियको दावी शइयं तु अईयारं आलोएज्जा लहक्कमं ॥ पक्कि मत्तु निसस्तो वन्दत। काउस्सग्गं तओ कुज्जा, सब्व- तुक्खविमोकवणं ॥ किं तवं परिवज्जामि, एवं तस्थ विचिन्तए । काउस तु पारिता करा मन ।।
निनाशील पापश्रमण
१६५-१६९
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निद्राशील पापश्रमण -
१६५. जो प्रत्रजित होकर बार-वार नींद लेता है, खा-पीकर आराम से लेट जाता है, वह पाप श्रमण कहलाता है ।
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रात्रि समावारी
१६६. विवक्षण भिक्षु रात्रि के भी चार भाग करें। उन चारों भागों में स्वाध्याय आदि उत्तर गुणों की आराधना करे ।
प्रथम प्रहर में स्वाध्याय, दूसरी में ध्यान, तीसरी में निद्रा और चोधी में पुन स्वाध्याय करे ।
रात्रि पौरुषी विज्ञान -
१६०. जो नक्षत्र जिस रात्रि को वहन करता है, वह नक्षत्र जब आकाश के चतुर्थ भाग में आये तब प्रदोष काल (रात्रि के प्रारम्भ में प्रारम्भ की हुई स्वाध्याय से विरत हो जाए ।
वही नक्षत्र जब आकाश के चतुर्थ भाग में शेष रहे तब वैदिक काल अर्थात् रात का चतुर्थ प्रहर आया हुआ जानकर मुनि फिर स्वाध्याय काल की प्रतिलेखना करे ।
रात्रि के चतुर्थ प्रहर की सदाचारी---
१६५. चीधे प्रहर में काल की प्रतिलेखना कर असंयत व्यक्तियों को न जगाता हुआ स्वाध्याय करे अर्थात् ऊँचे स्वर से न बोले ।
रात्रि के प्रहर के चतुर्थ भाग में गुरु को बन्दना करे, स्वाध्याय काल से निवृत्त होकर प्रतिक्रमण काल की प्रतिलेखना करें ।
कायोत्सर्ग का समय आने पर सर्व प्रकार के दुःखो से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करं ।
रात्रि प्रतिक्रमण समाचारो
१६६. ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप में लगे रात्रि सम्बन्धी अतिचारों का अनुक्रम से चिन्तन करे ।
कायोत्सर्ग को समाप्त कर गुरु को वन्दना करे। फिर अनुक्रम से रात्रि सम्बन्धी अतिचारों की आलोचना करे ।
प्रतिक्रमण से निःशल्य होकर गुरु को वन्दना करें, फिर स दुःखों से मुक्त करने वाला कायोत्सर्ग करे |
मैं कौन-सा तप ग्रहण करू ? कायोत्सर्ग में इस प्रकार का चिन्तन करे । फिर कायोत्सर्ग को समाप्त कर जिन संस्तव (शोरस का पाठ करे।