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________________ १८] चरणानुयोग-२ यतनावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से संयम पोवसमें कडे भवाइ से णं असोच्या केवतिस्स वा हुआ है वह केवली से-पावत्-केवली पाक्षिक उपासिका से जाव-तपक्षिय उवासिवाए वा केवलेणं संजोगं सुने बिना संयम पालन कर सकता है। संजमेजा। जस्स पं जयणावरणिजाणं कम्माणं खओवसमें नो जिसके यतनावरणीय कर्मों का क्षयोपशम नहीं हुआ है वह करें सबइ से गं असोच्या केलिस्स वा-जाव-तपक्खि. केवली से यावत्-केवलीपाक्षिक उपासिका से सुने बिना पउवासियाए वा केबसेणं संजमोफ नो संजमेज्जा। संयम पालन नहीं कर सकता है। गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है किअसोचा केवलिस्स वा-जाव-तप्पक्विपउवासियाए केवली से—पावत्-केबली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना वा अत्यगए केवलेणं संजमेणं यंजमोजजा । अत्यगइए कोई एक जीव संयम पालन कर सकता है और कोई एक जीव केवलेणं संजमेणं नो संजमेजा। संयम पालन नहीं कर सकता है। -विया. स. ६, उ. ३१, सु. ६ प०-सोच्चा णं मंते 1 केवलिस्त वा-जाव-तप्पक्खियउषा- प्र-मन्ते ! केवली रो-यावत्-केवली पाक्षिक उपा सियाए वा केवलेष संजमेणं संजमेज्जा ? सिका से सुनकर कोई जीव संयम पाला क सकता है ? उ. -गोयमा ! सोच्चा णं केवलिस्स बा-जाव-सम्पक्खिय- उ०---गौतम ! केवली से-पावत् --के पली पाक्षिक उपा उवासियाए वा अस्गहए केवलेग संजमेणं संजमेरमा, सिका से सुनकर कोई एक जीव संवम पालन कर सकता है और अत्यगइए केबसेणं संजगणं नो संजमेज्जा। कोई जीव संयम पालन नहीं कर सकता है। १०- से केणठेणं भते ! वुच्चा H०-भन्ते ! विस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है किसोच्चा गं केवलिस्म या-जावतप्पक्लिपउवासियाए केवली से-यावत् - केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर या अत्गइए केवलेग संजमेणं संज मेज्जा, अत्थेगइए कोई जीव संयम पालन कर सकता है और कोई जीव संयम केवलेणं संजमेणं नो संजमेगा? पालन नहीं कर सकता है? - गोयमा ! जस्स पं जयणावरणिज्जाणं कम्माणं उ.-पौतम ! जिसके पतनावरणीय कर्मा का क्षयोपशम खओवसमे कडे भवइ सेणं मोच्चा केवलिस्त वा-जाव- हुआ है वह केवलो से-यावत् केवली पाक्षिक उपासिका से तपक्खियउवासियाए या केबलेणं संजमेणं सुनकर संयम पालन कर सकता है । संजमेजा। जस्स गं जयणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमे नो जिसके यतनावरणीय कर्मों का अयोपशम नहीं हुआ है वह कडे भवद सेणं सोचा केवलिस्स बा-जात्र-सप्पशिखय- केवली से-यावत्-के.वनी पाक्षिक उपासिका से सुनकर संयम उवासियाए वा केवलेणं संजमेणं नो राजभेजा। पालन नहीं कर सकता है। से तेणठेगं गोयमा ! एवं बुच्च-- गौतम ! इस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है किसोच्चा णं केवलिसा वा-जाव-तप्पक्खियउवासियाए केवली से—यावत्- केवली पाक्षिक उपासिका से सुनकर या अत्यगइए केवलेषं संजमेणं जमेण्जा । अत्येगइए कोई एक जीव संयम पालन कर सकता है और कोई एक जीव केवलेणं संभमेणं नो संजमेज्जा। संयम पालन नहीं कर सकता है। -बिया. स. ६, उ, ३१, सु. ३२ १ बिया० स०६, ३० ३१, सु०१३
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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