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________________ पुत्र ७१-७४ संयम योग्य जन संयमो जीवन १७ संजम जोग्या जणा संयम योग्य जन७१. वो ठाणाई अपरियाणता आया णो केवलेणं संजमेणं संज- ७१. आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जाने और छोड़े भेज्जा, तं जहा बिना आरमा सम्पूर्ण संयम के द्वारा संयत नहीं होता। (१) आरंभे चैत्र (२) परिग्रहे चेव। दो ठाणाई परियाणेता आया केवलेणं संजमेणं संजमेम्जा, आरम्भ और परिग्रह-इन दो स्थानों को जानकर और तं जहा - ___ छोड़कर आत्मा सम्पूर्ण संयम के द्वारा संपत्त होता है। (१) आरंभे रोव (२) पशिगहे ग्रेव। -~ठाणं, अ.२, उ. १, सु. ५४-५५ संजमजोग्गा जामा-. संयम योग्य प्रहर-- ५२. तओ जामा पणत्ता, ते जहा ७२. तीन प्रकार के याम (प्रहर) कहे गये हैं-यथा(१) पहमे जामे, (२. मजिसमे जामे, (३) पच्छिम जामे। (१) प्रथम याम, (२) मध्यम याम, (३) अन्तिम याम । तिहिं जामेहि आया केवलेलं संजमेणं संजमेज्ना, तं जहा --- तीनों ही यामों में आत्मा विशुद्ध संयम से संयत हो सकता है-यथा - (१) पलमे जामे, (२) मजिसमे जामे, (३) पच्छिमे जामे। (१) प्रथम याम में, (२) मध्यम याम में, (३) अन्तिम -ठाणं. अ. ३, उ. २, सु. १६३ याम में । संजमजोग्या वया - संयम योग्य वय - ७३. तओ वया पण्णता, तं जहा ७३. तीन प्रकार के वय कहे गये हैं-यथा(१) पढमे धए, () मज्झिमे वए. (३) पछिमे वए। (१) प्रथम वय, (२) मध्यम वय, (३) अन्तिम बय । तिहिं वएहि आया केवलेणं संजमेणं संजमेज्जा, तं जहा... सीनों ही वयों में आत्मा विशुद्ध संयम से संयत हो सकता है-यथा(१) पढमे षए, (२) मजिसमे वए, १३) पच्छिमे वए। (१) प्रथम वय में, (२) मध्यम वय में, (३) अन्तिम -ठाणं अ. ३. उ. २, सु. १६३ वय में। जयणावरणिज्जकम्मखओवसमेण संजमं- यतनावरणीय कर्मों के क्षयोपशम से संयम७४. प० ---असोच्चा णं भंते ! केलिस्स वा-जाव-तपस्विय- ७४. प्र. - मन्ते ! केवनी से-यावत्-केवली पाक्षिक उपा उवासियाए वा केवलेणं संजमेणं संजमज्जा? सिका से बिना सुने कोई एक जीव रांयम पालन कर रावता है ? उ०-गोयमा ! असोच्चा णं केलिस्स बा-जाब-तपक्षिय- .- गौतम ! केवली से-यावत्-केवली पाक्षिक उपा उवासियाए वा अत्थेगइए केवलेष संजमेणं संजमेज्जा, सिका से सुने बिना कोई जीव संयम पालन कर सकता है और अत्यगइए केवलेणं संजमेणं नो संजमेज्जा। कोई जीव संयम पालन नहीं कर सकता है। ५० - से केणठेणं भंते ! एवं युवई प्र०-- भन्ते ! किस प्रयोजन से ऐसा कहा जाता है किअसोच्चा णं केवलिस्स बा-जान-सम्पक्खियतवासियाए केवली से यावत् - केवली पाक्षिक उपासिका से सुने बिना वा अत्येगइए केवलेणं संजमेणं संजमेम्जा, अत्यगइए कोई जीव संयम पालन कर सकता है और कोई जीव संयम केवलेणं संजमेणं नो संजमज्जा ? पालन नहीं कर सकता है? उ-गोयमा! जस्स णं जयणावरणिज्जाणं कम्माण उ.-गौतम ! जिसके यतनावरणीय कर्मों का क्षयोपशम अयतना प्रमाद से होती है, प्रमाद आधव है । यतना अप्रमाद से होती है, अप्रमाद संवर है। मेवर ही संयम है। वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से अप्रमत्तता और उससे यातना होना निश्चित है। यही वीर्यास्तराम के पायोपशम को यतनावरणीय कर्म का क्षयोपशम समझना चाहिए।
SR No.090120
Book TitleCharananuyoga Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages571
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Conduct, Agam, Canon, H000, H010, & agam_related_other_literature
File Size18 MB
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