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(८२) नीचगोत्र, तिर्यग्गति, तिर्यग्गत्यानुपूर्वी, तिर्यगायु और उद्योत इन २५ व्युच्छिन्न प्रकृतियोंके घटानेसे शेष रहीं ७६ । इनमेंसे मनुष्यायु और देवायु ये दो और घटा देनी चाहिये । क्योंकि इस गुणस्थानमें किसी भी आयुकर्मका बंध नहीं होता है । इस तरह ७४ प्रकृतियोंका बन्ध होता है । ____ चौथे गुणस्थानमें ७७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। ऊपर कही हुई ७४ और मनुष्यायु, देवायु तथा तीर्थकर ये तीन; कुल ७७ । __ पांचवें गुणस्थानमें ६७ प्रकृतियोंका बन्ध होता है। चौथे गुणस्थानकी ७७ प्रकृतियों से अप्रत्याख्यानावरण, क्रोध, मान, माया, लोभ, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, मनुष्यायु, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, और वजषभनाराच संहनन ये दश व्युच्छिन्न-प्रकृतियां घटा देनेसे ६७ रह जाती हैं। __छठे गुणस्थानमें ६३ प्रकृतियोंका बन्ध होता है । ऊपरके ६७ मेंसे प्रत्याख्यानावरण क्रोध, मान, माया और लोभ इन ४ को घटा देनेसे ६३ रहती हैं ।
सातवें गुणस्थानमें ५९ प्रकृतियोंका बन्ध होता है । छठे गुणस्थानकी ६३ बन्धप्रकृतियोंमेंसे अस्थिर, अशुभ, असाता, अयश कीर्ति, अरति, और शोकके घटानेसे शेष रही ५७, इनमें आहारकशरीर और आहारक अंगोपांग इन दोके मिलानेसे ५९ होती हैं।