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समुद्धात होता है, जिनमें असंख्यात गुणी निर्जरा होती है । ऐसा जिनदेवने कहा है ।
मिथ्यातीकी मुक्ति न हो, सम्यक्तीकी हो ।
एक समैमाहिं एकसमैपरबद्ध बँधै, एक समै एकसमैपरबद्ध झरे है । वर्गना जघन्यमै अभव्यसौं अनंतगुनी, उतकिष्ट सिद्धको अनंत भाग धरै है || जैसैं एक गास खाय सात धात होय जाय, तैसें एक सातकर्मरूप अनुसर है । यों न लहै मोख कोइ जाके उर ग्यान होइ, एकसमै बहु खोइ सोइ सिव बरै है ॥ ५७ ॥
अर्थ - जबतक मिथ्यात्व परिणाम रहते हैं, तबतक आत्मा कमसे नहीं छूट सकता है । जब सम्यक् परिणाम होते हैं, तब ही वह कर्मोंसे मुक्त होता है । इसी बात को बतलाते हैं: - मिथ्याती जीव एक समयमें एक - समयप्रबद्ध कर्म वर्गणाओंका बंध करता है और एक समयमें एक- समयप्रबद्ध वर्गणाओं को ही झड़ाता है । ( एक समय में जितने कर्मपरमाणुओंका बंध होता है, उतनेको समयप्रबद्ध कहते हैं । इन समयप्रबद्ध कर्मपरमाणुओं में अनन्त कर्मकर्मणायें होती हैं । ) जघन्य वर्गणाका प्रमाण अभव्य जीवों की
१ अनन्तके अनन्तभेद हैं ।