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(७३) केवली समुद्धात करते हैं, तब उनके कौन कौन
योग होते हैं?
सवैया इकतीसा । पहलै समैमैं करें दंड आठमैं संवरें, परदेस आतम औदारिक प्रमानिए। दूसरे कपाट होंय सातमैं संवरै सोय, संवरें प्रतर छ? मिस्र जोग जानिए ॥ तीसरे प्रतर, चौथै पूरत सरव लोक, पूरन संवरें पांचैं कारमान मानिए ।
आठ समैंमाहि जात केवल समुदघात, निर्जरा असंख गुनी देव सो बखानिए ॥५६॥ - अर्थ-मूल शरीरके विना छोड़े जीवके प्रदेशोंके शरीरसे बाहर निकलनेको समुद्धात कहते हैं । चौदहवें गुणस्थानके पूर्ण होने में जब अन्तर्मुहूर्त काल बाकी रह जाता है, तब गोत्र वेद और नामकर्मकी स्थिति आयुकर्मकी स्थितिके समान करनेके लिये केवली भगवानके आत्मप्रदेश शरीरसे बाहर निकलते हैं और पहले समयमें दंडेके आकार होते हैं जब कि जीव आत्मप्रदेशोंको शरीरके विस्तारके प्रमाण
१ जिन मुनियोंको आयुके छह महीना शेष रहनेके पीछे केवलज्ञान होता है, वे मुनि नियमसे समुद्धात करते हैं । परन्तु जिनके छह महीनेसे पहले केवलज्ञान हो जाता है, वे समुद्धात करते भी हैं और नहीं भी करते हैं-कुछ नियम नहीं है।
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