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(७२) धनुषका है । तेइंद्रिय जीवोंके पहली दो इंद्रियोंके सिवा एक घ्राण ( नाक ) इंद्रिय और होती है । इसका विषय १०० धनुष है और चौइंद्रिय तथा असेनी पंचेंद्रिय जीवोंकी घ्राण इंद्रियका विषय पूर्वसे दूना दूना अर्थात् २०० और ४०० धनुषका है। चौइंद्रिय जीवोंके पहले कही हुई तीन इंद्रियोंके सिवा एक नेत्र इंद्रिय और होती है । इसका विषय २९५४ योजनका है ! इससे दूना अर्थात् ५९०८ योजन असेनी पंचेन्द्रियकी नेत्र इंद्रियका विषय है । असेनी पंचें. द्रियके चौ इंद्रियसे एक कान इंद्रिय और अधिक होती है । अर्थात् जो सुनता है सो असेनी पंचेंद्रिय है । इसका विषय ८०० धनुषका है । पंचेंद्रिय जीवोंकी इंद्रियोंका विषय इस प्रकार है;-घ्राण (नाक ) का ९ योजन, रसना, स्पर्श
और कानका बारह बारह योजन और नेत्रद्वारा पंचेंद्रिय जीव ४७२६३ योजनतक देख सकता है । इस प्रकार जिन भगवानने कहा है।
यहां इंद्रियोंके विषयकी उत्कृष्ट सीमा बतलाई है । इसका अभिप्राय यह है कि एकेन्द्रियादि जीवोंकी इंद्रियां अधिकसे अधिक इतने दूरतकके पदार्थीका ज्ञान कर सकती हैं। इससे आगेके पदार्थोंका वे विषय नहीं कर सकती हैं । पंचेन्द्रिय जीवोंमें पांचों इंद्रियोंका उत्कृष्ट विषय जो ऊपर कहा है, वह चक्रवर्तीके होता है, अन्य सामान्य जीवों के नहीं।