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(७१) भोगकर यह यहांसे च्युत होकर एक मनुष्य जन्म धारण करके मोक्षको सिधारता है।
इन्द्रियोंके विषयकी सीमा ।
छप्पय । फरस चारिसै धनुष, असेनीलौं दुगुना गनि। रसना चौसठि धनुष, घान सौ तेइंद्री भनि ॥ चख जोजन उनतीस, सतक चौवन परवानो। कान आठसै धनुष, सुनै सेनी सो जानो ॥
नव जोजन प्रान रसन फरस, कान दुवादस जोजना। चख सैंतालीस सहस दुसै,
तेसठि देखै जिन भना ॥ ५५ ॥ अर्थ-एकेन्द्रिय जीवके एक स्पर्शन इन्द्रिय ही होती है। इसकी स्पर्शन इन्द्रियका विषय ४०० धनुष्य का होता है। आगे दोइन्द्रियसे लेकर असेनी पंचेन्द्री तकके जीवोंके जो स्पर्शन इंद्रिय होती है उसका विषय दना दूना है। अर्थात् दोइंद्रियकी स्पर्शन इन्द्रियका विषय ८००, तेइन्द्रियका १६००, चौइंद्रियका ३२०० और असेनी पंचेंद्रियका ६४०० धनुष है । दो इंद्रिय जीवोंके स्पर्शनके सिवा रसना ( जीभ ) इंद्रिय और होती है । इसका विषय ६४ धनुषका है । आगे तेइंद्रिय चौइंद्रिय और पंचेंद्रिय जीवोंकी रसनाका विषय भी दूना दूना अर्थात् क्रमसे १२८, २५६ और ५१२