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(६९) इस तरह ६८ । इन सब ४५८ चैत्यालयोंकी मैं बन्दना करता हूं। ये सब विघ्नोंके हरण करनेवाले हैं।
ऊर्ध्वलोकके अकृत्रिम चैत्यालय ।
- सवैया इकतीसा । प्रथम बत्तीस दूजें अट्ठाईस तीजै बार, चौथें आठ पांचें छ? चार लाख ख्यात हैं । सातें आठमैं पचास नौमैं दसमें चालीस, ग्यारे बारै छै हजार चारौं सत सात हैं। अधो एक सत ग्यारै मध्य एक सत सात, ऊरध इक्यानू नव नवोत्तरै जात हैं। पंचोत्तरे चवरासी लाख सत्ताने हजार, तेईस चैत्याले सब बन्दौं अघघात हैं ॥५३॥ अर्थ-पहले सौधर्मस्वर्गमें ३२ लाख, दूसरे ईशानस्वर्गमें २८ लाख, तीसरे सनत्कुमारस्वर्गमें १२ लाख, चौथे माहेन्द्रस्वर्गमें ८ लाख, पांचवें ब्रह्म और छठे ब्रह्मोत्तरस्वर्गमें ४ लाख, सातवे लांतव और आठवें कापिष्टस्वर्गमें ५० हजार, नववे शुक्र, दश महाशुक्र स्वर्गमें ४० हजार, ग्यारहवें वारहवें सतार सहस्रार स्वर्ग ६ हजार, तेरहवें चौदहवें पन्द्रहवें सोलहवें आनत प्राणत आरण और अच्युत इन चारों स्वर्गों में ७००, अधोग्रैवेयकमें १११, मध्यप्रैवेयकमें १०७, ऊर्ध्वग्रेवेयकमें ९१, नवोत्तर अर्थात् अनुदिश विमानों में ९ और पंचोत्तर विमानोंमें ५; इस तरह ऊर्ध्वलोकके सब