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(६६) .. अर्थ-जम्बूद्वीपमें २, लवणसमुद्रमें १, धातकी खंडमें १२ और कालोदधि ४२ चन्द्रमा हैं । आगे पुष्करद्वीप है । उसके दो भाग हैं । इधरके पहले भागमें ७२ और उधरके दूसरे भागमें १२६४ चन्द्रमा हैं । ऐसा जगदीस अर्थात् जिनेन्द्र भगवानने कहा है । पुष्करद्वीपके आगे पुष्कर समुद्रमें ११२०० चन्द्रमा हैं और उसके आगे-समुद्रसे चौगुने समुद्रमें और द्वीपसे चौगुने द्वीपमें हैं । ढाई द्वीपसे आगेके द्वीप और समुद्र जो जितने लाख योजनके हैं, उनमें उतने ही बलय हैं और प्रत्येक बलयमें दो दो चन्द्रमा होते हैं । इसलिये बलयोंसे दूने दूने अधिक चन्द्रमा होते गये हैं । इन सब चन्द्रमाओंमें असंख्यात जिनचैत्यालय हैं । उनकी मुनिगण वन्दना करते हैं।
१ पूर्व पूर्व द्वीप और समुद्रके चन्द्रमाओंके प्रमाणसे उत्तरोत्तर द्वीप और समुद्रके चन्द्रमाओंका प्रमाण चौगुना चौगुना है। परन्तु इतना विशेष है कि उत्तर द्वीप और समुद्रके वलयोंके प्रमाणसे दूना प्रमाण उस चौगुनी संरख्यामें और मिलाना चाहिये । जैसे पूर्व पुष्करसमुद्रके चन्द्रमाओंकी संख्या ११२०० है, जिसको चौगुना करनेसे ४४८०० हुए । इसमें उत्तरद्वीपके वलयोंके प्रमाण ६४ के दूने १२८ मिलानेसे उत्तरद्वीपके चन्द्रमाओंका प्रमाण १४९२८ होता है । इसही प्रकार आगे जानना।
२ जम्बूद्वीपमें एक, लवण समुद्रमें दो, धातकी संडमें छह, कालोदधिमें इक्कीस और पुष्करके पूर्वार्ध में छत्तीस चलय (परिधि ) हैं । आगेके बलयों के प्रमाणमें विशेषता है । पुष्करका उत्तरार्ध आठ लाख योजनका है; इसलिये उसमें आठ बलंय हैं । पुष्करसमुद्र ३२ लास योजनका है, इसलिये उसमें ३२ वलय हैं।