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क्षपक वा क्षायक श्रेणीवाला जीव नीचे नहीं पड़ता है । ऊपर चढ़ता है, तो ग्यारहवें गुणस्थानमें नहीं जाता है, दशवेंसे बारहवेमें पहुँच जाता है । और बारहवें के विनाश तथा तेरहवें प्रारंभ केवलज्ञान प्राप्त करके चौदहवें गुण- स्थानमें जाता है और उसके अन्तमें मुक्त हो जाता है । चौवीस तीर्थंकरों के शरीरका वर्ण ।
छप्पय ।
पंहुपदंत प्रभु चंद, चंद सम सेत विराजै । पारसनाथ सुपास, हरित पन्नामय छाजै ॥ वासुपूज्य अरु पदम, रकत माणिकदुति सोहै । मुनिसुव्रत अरु नेमि, स्याम सुरनरमन मोहै ॥ बाकी सोलै कंचन वरन, यह विवहार शरीरशुति । fret अरूप चेतन विमल, दरसग्यानचारित
जुत ॥ ४५ ॥
अर्थ - पुष्पदन्त और चन्द्रप्रभ भगवानके शरीरका वर्ण चन्द्रमाके समान सफेद है, पार्श्वनाथ और सुपार्श्वनाथका हरे पन्ने के समान रंग है, वासुपूज्य और पद्मप्रभका
१ द्वौ कुन्देन्दुतुषारहारधवलौ द्वाविन्द्रनीलप्रभो । द्वौ बन्धकसमप्रभो जिनवृषौ द्वौ च प्रियङ्गुप्रभो । शेषा षोडशजन्ममृत्युरहिता सन्तप्तहेम प्रभास्तेसज्ञानदिवाकरा सुरनताः सिद्धिं प्रयच्छन्तु नः ॥