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योजनकी ऊंचाई तक ज्योतिषचक्र है और आकाशमें उसका विस्तार एकसौ दश योजनका है । अर्थात् पृथ्वीसे ७९० योजनकी ऊंचाई से उसका प्रारंभ होता है और ९०० योजनपर अन्त होता है । बीचमें ११० योजनमें उसका विस्तार है । गुणस्थानोंका गमनागमन ।
छप्पय ।
मिथ्या मारग च्यारि, तीनि चउ पांच सात भनि । दुतिय एक मिथ्यात, तृतिय चौथा पहला गनि ॥ अत्रत मारग पांच, तीनि दो एक सात पन । पंचम पंच सुसात, चार तिय दोय एक भन ॥ छट्टे षट इक पंचम अधिक, सात आठ नव दस सुनौ । तिय अध ऊरध चौथे मरन, ग्यार बार विन दो मुनौ ॥ ४४ ॥
अर्थ- पहले मिथ्यात गुणस्थान से ऊपर चढनेके चार मार्ग हैं। कोई जीव मिथ्यात्वसे तीसरे गुणस्थानमें जाता है, कोई चौथेमें, कोई पांचवें में और कोई एकदम सातवेंमें जाता
। दूसरे सासादन गुणस्थानसे एक ही मार्ग है अर्थात् वहांसे मिथ्यात्व गुणस्थानमें ही जाता है । तीसरे गुणस्थानसे यदि ऊपर चढता है, तो चौथे गुणस्थान में जाता है