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(५६) अपर्याप्तके प्रकारसे ६ भेद और आर्यखंडके मनुष्यों के पर्याप्त अपर्याप्त अलब्धपर्याप्त ये तीन भेद । सब मिलानेसे ९८ भेद हुएस्थावर जीवोंके............४२ भोगभूमिके थल नभ चारियोंके४ विकलत्रयके................ ९ देव नारकियोंके............ ४ कर्मभूमिके जलचारियोंके १० भोगकुभोग म्लेच्छमनुष्योंके ६
" थलचारियोंके.... १० आयखंडके मनुष्योंके....... ३ , नभचारियोंके .... १० इन सब जीवोंपर जो दया करते हैं, वे ही साधु पुरुष हैं ।
. प्रमादोंके भेद ।
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छप्पय ।
विकथारूप पचीस औस पनवीस कसायनि । गुणतै छस्सै सवा, पांच इंद्री मनसौं गनि ॥ पौने चार हजार, पांच निद्रासौं गुनिए । सहस पौन उनईस, नेह अरु मोह सु सुनिए ॥ साढ़े सैतीस हजार सब, भेद प्रमाद प्रमानिए । छटे गुणथानकलौकहे, त्याग आपथिर ठानिए ४२ __ अर्थ-विकथाके २५ भेद हैं । उनसे २५ कषायोंका गुणा करनेसे ६२५ होते हैं । और ६२५ का पांच इन्द्रिय
१ विकथाके मूल भेद तो चार ही हैं, परन्तु उत्तरभेद मूलसहित २५ हैंराज कथा, भोजन कथा, स्त्री कथा, चोर कथा, धन, वैर, परखंडन, देश, कपट, गुणबंध, दैवी, निष्ठुर, शून्य, कंदर्प, अनुचित, भंड, मूर्ख, आत्मप्रशंसा, परवाद, ग्लानि, परपीड़ा, कलह, परिग्रह, साधारण, संगीत ।