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(५४) अर्थ-संक्षेपसे जीवोंके ५७ भेद होते हैं, वे इस प्रकारसे, पृथ्वीकाय, जलकाय, अग्निकाय, वायुकाय, नित्यनिगोद, और इतर निगोदं । इन छहोमें सूक्ष्म और वादर ये दो दो भेद होते हैं, इससे १२ भेद हुए । इनमें सप्रतिष्ठित प्रत्येक
और अप्रतिष्ठित प्रत्येक ये दो वनस्पतिकायके भेद और मिलानेसे १४ हो गये । और इन सबमें पर्याप्त, अपर्याप्त (निवृत्यपर्याप्त), और अलब्धपर्याप्त ( लब्ध्यपर्याप्त ) ये तीन तीन भेद होते हैं, इसलिये सब मिलाकर एकेन्द्रिय जीवोंके. ४२ भेद हुए । इनमें दो इंद्रिय, ते इंद्रिय और चौ इंद्रियके पर्याप्त, अपर्याप्त, अलब्धपर्याप्त भेद मिलानेसे ५१ हुए और पंचेन्द्री जीव संज्ञी असंज्ञी दो तरहके होते हैं और उन दोनों में पर्याप्त आदि भेद होते हैं । सो छह भेद पंचेन्द्रियजीवोंके हुए । सब मिलाकर एकेन्द्रियसे पंचेन्द्रिय पर्यन्त जीवोंके ५७ भेद हुए । इन सब जीवोंपर मनमें दयाभाव रखना चाहिये।
अहानवै जीव समास ।
सवैया इकतीसा ।
इक्यावन थान जान थावर विकलत्रैके,
गर्भज दो तीनि सनमूरछन गाए हैं। पांचौं सैनी औ असैनी जल थल नभचारी,
भोगभूमि भूचर खेचर दो दो पाए हैं।