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(४९) ती है । जिस कर्मकी जितनी स्थिति बांधी हो, उतनीसे अधिक हो जानेको उत्कर्षण कहते हैं और घटजानेको अपकर्षण कहते हैं । किसी कर्मके सजातीय एक भेदसे दूसरे भेदरूप हो जानेको संक्रमण कहते हैं । द्रव्य क्षेत्र काल भावके निमित्तसे कर्मकी शक्तिके प्रगट न होनेको उपशम कहते हैं अर्थात् जब कर्मोंकी उदीरणा नहीं होती है और उदय भी नहीं होता है, तब उपशम होता है । संक्रमण और उदीरण न होनेको अर्थात् जो कर्मप्रकृति बांधी हों, वे न दूसरे रूप हों और न उनकी उदीरणा हो, उसे निधत्त कहते हैं । और जिसमें स्थितिका घटना बढ़ना पररूप होना और उदीर्ण होना ये चारों बातें न हों, उसे निकांचित कहते हैं । इस तरह बंधके दश प्रकार हैं । हे मन तुझे आत्माका पद इनसे सर्वथा भिन्न समझना चाहिये। तीन लोकके अकृत्रिम चैत्यालयोंकी संख्या ।
सवैया तेईसा (मत्तगयन्द)। सात किरोर बहत्तर लाख,
पतालविषै जिनमंदिर जानें । मध्यहि लोकमैं चार सौ ठावन,
व्यंतर जोतिकके अधिकानें ॥ लाख चौरासि हजार सतानवै,
तेइस ऊरध लोक बखाने ।
च०४