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पुण्य प्रकृतियोंके नाम। सुर नर पसु आव साता ऊंच भली चाल,
सुर नर आनुपूर्वि निरमान स्वास है। बंधन संघात देह वर्ण रस पंच त्रस,
तीन अंग सुभ दोय गंध आठ फास है। अगुरुलघु पंचेंद्री संस्थान संहनन,
वादर प्रतेक थिर पर्यापत जस है। आतप उद्योत परघात सुस्वर सुभग,
आदेय तीर्थंकरकौं बंदौं अघ नास है ३० अर्थ-देवआयु १, मनुष्यआयु , तिर्यंचआयु १, सातावेदनी १, ऊंच गोत्र १, प्रशस्त विहायोगति १, देवगति १, मनुष्यगति १, देवगत्यानुपूर्वी १, मनुष्यगत्यानुवर्ती १, निर्माण ', श्वासोच्छास १, बंधन ५, संघात ५, शरीर ( औदारिकादि ) ५, वर्ण ५, रस ५, त्रस १, औदारिकअंगोपांग १, वैक्रियक अंगोपांग १, आहारकअंगोपांग १, शुभ १, गंध २, स्पर्श ८, अगुरुलघु १, पंचेंद्री १, समचतुरस्रसंस्थान १, वज्रवृषभनाराचसंहनन १, वादर १, प्रत्येक १, स्थिर १, पर्याप्त १, यश १, आतप १, उद्योत १, परघात १, सुस्वर १, सुभग १, आदेय १, और तीर्थकर १ ये सब ६८ पुण्यप्रकृतियां हैं । समस्तपुण्य