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(३९) चारमें गर्भित हो जाते हैं, इसलिये १६ तो ये कम हुए। और ५ शरीर, ५ बंधन ५ संघात ये १५ प्रकृतियां अविनाभावी हैं । अर्थात् जहां एक शरीरका बंध होता है, वहां उस शरीरसम्बंधी बंधन और . संघातका भी बंध अवश्य होता है । इसलिये ५ शरीरप्रकृतियोंमें अविनाभावसम्बंधसे ५ बंधन और ५ संघात भी गर्भित हो जाते हैं । दर्शनमोहकी ३ प्रकृतियां हैं, उनमेंसे १ मिथ्यात्वप्रकृति बंधयोग्य है, बाकी २ बंधयोग्य नहीं हैं । अर्थात् सम्यक्त्वमिथ्यात्व और सम्यकप्रकृतिका • बंध नहीं होता है, किन्तु उपशमसम्यक्तीके मिथ्यात्वके तीन खंड हो जाते हैं । इस तरह सोलै दश दोय अर्थात् २८ हुई । इनको छोड़कर बाकी १२० प्रकृतियां बंधयोग्य हैं । और उदयमें दर्शनमोहनीकी तीनों प्रकृति आती हैं, इसलिये बंधकी अपेक्षा उदयमें २ प्रकृतियां जादा हुई । अर्थात् १२२ प्रकृतियां उदयमें आती हैं । और इतनीहीकी अर्थात् १२२ हीकी उदीरणा (स्थिति पूरी किये विना ही कर्मोंका फल देकर झड़ना ) होती है । नानाजीवोंकी अपेक्षा सत्ता १४८ ही प्रकृतियोंकी पाई जाती है । यह सामान्य सत्ता है । विशेष सत्ता किसी एक जीवकी अपेक्षासे होती है । सो किसी एक जीवके मिथ्यात्वगुणस्थानमें अधिकसे अधिक १४६ प्रकृतियोंकी सत्ता पाई जाती है । किसीके १२७ की भी बतलाई है । हमारा आत्मा इन पांचों ही त्रिभंगियोंसे जुदा निजसत्तामें विराजता है।