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(३८) अचक्षुर्दर्शनावरणी, अवधि दर्शनावरणी, ये तीन दर्शनावरणी; दानान्तराय, लाभान्तराय, भोगान्तराय, उपभोगान्तराय, वीर्यान्तराय ये पांच अन्तराय; और एक सम्यक्त्व इस. तरह २६ देशघाती प्रकृतियां हैं । ये आत्माके गुणोंको एकदेश घात करती हैं-सर्वथा घात नहीं करतीं, इसलिये देशघाती कहलाती हैं । और १०१ प्रकृति अघातिया कर्मोंकी हैं । इस तरह सब मिलाकर २१+२६+१०१=१४८ प्रकृति हैं । इन तीनों प्रकारके कर्मोको नाश करके आत्मा शुद्ध होता है-मोक्षको प्राप्त होता है। पांच त्रिभंगी (बंध, उदय, उदीरणा, सत्ता, विशेष सत्ता)।
सवैया इकतीसा । वर्णादिक च्यार सोलै नाहिं देह आदि पंच,
दस नाहि मिथ्या एक दोय बंध नाहीं है। सोले दस दोय विना बंध एक सतवीस,
मिथ्या उदै तीन दोय बड़े उदै पाहीं है। उदय औ उदीरणा एक सत बाइसकी,
सत्ता सौ अड़ताल विसेस सत्ता ठाहीं है। मिथ्या गुण सौ छियाल काहू सत सत्ताईस,
पांचौं तिरभंगीसौं असंगीआपमाहीं है।२७) अर्थ-वर्ण, गंध, रस और स्पर्शके जो २० वीस भेद हैं, वे सामान्यकी अपेक्षासे स्पर्श, रस, गंध और वर्ण इन