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(३७) सर्वघाती और देशघाती प्रकृतियां । केवल दरस ग्यान आचरणी ताकी दोय,
मिथ्यात समै मिथ्यात निद्रा पांच भानिए। तीनों चौकरीकी बारै सर्वघाती इकईस, . संज्वलन चार नव नोकषाय मानिये ॥ ग्यानावरणीकी चार दर्शनावरणी तीन, _ अंतराय पांच सम्यक मिथ्यात ठानिये । देसघातीकी छबीस बाकी एकसौ अघाती,
तीनौं घातीकर्म घात आप सुद्ध जानिये॥ अर्थ-केवलज्ञानावरणी, केवलदर्शनावरणी, मिथ्यात्व, सम्यकमिथ्यात्व, (मिश्रमिथ्यात्व ) निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धिनिद्रा ये पांच निद्रा, 'अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, अप्रत्याख्यान क्रोध, मान, माया, लोभ, ये तीन चौकड़ीके बारह कषाय; इस तरह इक्कीस सर्वघाती प्रकृतियां हैं । ये आत्मगुणको सर्वथा घातनेवाली हैं, इस लिये सर्वघाती कहलाती हैं । और संज्वलन क्रोध, मान, माया, लोभ ये चार संज्वलन कषाय; हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्रीवेद, पुरुषवेद. नपुंसकवेद ये नौ नोकषाय; मतिज्ञावावरणी, श्रुतज्ञानावरणी, अवधिज्ञानावरणी, मनःपर्ययज्ञानावरणी, ये चार ज्ञानावरणी; चक्षुर्दर्शनावरणी, .