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(३५) जरूप कर्मोके हैं । अपने निजरूपको इनसे जुदा श्रद्धान करना चाहिये । (१४८ मेंसे १०१ प्रकृति तो चार अपातिया कर्मोकी हैं और ४७ चार घातिया कर्मोंकी हैं।) भवविपाकी, क्षेत्रविपाकी, पुद्गलविपाकी और
जीवविपाकी प्रकृतियां।
सवैया इकतीसा । वरनादिक बीस संस्थान संहनन बारे, ___ बंधन संघात देह अंगोपांग ठारै हैं । अगुरु लघु आतप उपघात परघात,
निरमान परतेक साधारन सारै हैं । अथिर उदोत थिर सुभ असुभ बासठ, ___पुग्गलविपाकी भौविपाकी आव चारै हैं। क्षेत्रकी विपाकी चार आनुपूर्वी अठत्तर,
बाकी जीवकी विपाकी धरै अघटोरै हैं २५ अर्थ-वर्ण ५, गंध २, स्पर्श ८ और रस ५ इस तरह वर्णादिक २० प्रकृतियां संस्थान ६ और संहनन ६ इस तरह दोनों १२; बंधन ५, संघात ५, शरीर ५ और अंगोपांग ३, इस तरह चारों १८, अगुरुलघु १, आतप १, उपघात १, परघात १, निर्माण १, प्रत्येक १, साधारण १, 'अथिर १, उद्योत १, स्थिर १, शुभ १ और अशुभ १ इस तरह १२; कुल मिलाकर ६२ प्रकृतियां पुद्गलविपाकी