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इनमें कुछ तद्भवमोक्षगामी हैं अर्थात् उसी भवसे मुक्त होनेवाले हैं और कुछ ऐसे हैं, जो थोड़ेसे भव धारण करके मोक्ष जावेंगे । इसलिये इन मुक्तरूप आत्माओंकी वन्दना करता हूं । ( इनमेंसे जिनमाता पिता, कुलकर, बलभद्र, रुद्र, और कामदेव छोड़ देनेसे ६३ शलाका पुरुष कहलाते हैं । १६९ में कुछ तीर्थंकर, चक्रवर्ती और कामदेव पदवीके
हैं । १६९ ए हैं।) तालीस कर्मप्रकृतिया नौ विध ।
_____ एकसौ अड़तालीस कर्मप्रकृतियाँ । ग्यानावरनी पांच, दर्सनावरनी नौ विध । दोय वेदनी जान, मोहिनी आठ वीस निध॥ आव चार परकार, नामकी प्रकृति तिरानौ । तथा एकसौ तीन, गोत दो भेद प्रमानौ ॥ कहि अंतरायकीपांच सब,सौअड़तालिस जानिए। इमि आठकरम अड़तालिसौं, भिन्नरूप निज
मानिए ॥ २४ ॥ अर्थ-ज्ञानावरणीकी ५, दर्शनावरणीकी ९, वेदनीयकी २, मोहनीयकी २८, आयुकी ४, नामकी ९३ अथवा १०३, गौत्रकी २ और अन्तरायकी ५ इस प्रकार आठों कर्मकी सब मिलाकर १४८ प्रकृतियां हैं । ये १४८ भेद __ १ नाम कर्मकी ९३ प्रकृतियोंमें शरीरके ५ भेद अभेदविविक्षासे माने हैं । जहाँ १०३ भेद माने हैं, वहां शरीरके संयुक्त भेदोंकी अपेक्षासे १५ भेद् माने हैं।