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मनमें कामचिन्तवन करने मात्रसे इच्छाकी निवृत्ति हो जाती है। इन सोलह स्वर्गोंके आगे ग्रैवेयिक अनुदिशि आदिमें देवियां नहीं हैं और कषायकी बहुत मन्दता है, इसलिये वहांके देव सहज शीलवंत वा ब्रह्मचारी हैं । और जो अहमिंद्र हैं, उनमें पारिषदादि दश भेद छोटे बड़ेपनके नहीं हैं। वे बड़े सुखी हैं । उनसे अधिक सुखी सिद्ध भगवान हैं, जो कि विकार रहित हैं । उनकी मैं वन्दना करता हूं।
१६९ प्रधान पुरुषोंकी गणना ।
छप्पय । . चौवीसौं जिनराय-पाय बंदौं सुखदायक । कामदेव चौवीस, ईस सुमरौं सिवनायक ॥ भरत आदि चक्रीस, दुदस बहु सुरनरस्वामी।
नारद पदम मुरारि, और प्रतिहरि जगनामी॥ जिनमात तात कुलकर पुरुष,संकर उत्तम जियधरौं। कछु तदभव कछुभव धरत,मुकतिरूपबंदन करौं॥
अर्थ-सुखके देनेवाले २४ तीर्थंकरोंके चरणोंकी वन्दना करता हूं । २४ कामदेवोंका स्मरण करता हूं, जो उसी भवमें मोक्षके नायक अर्थात् सिद्ध हो गये हैं । भरतादि १२ चक्रवर्ती जो अगणित मनुष्य और देवोंके स्वामी थे, तथा ९ नारद, ९ बलभद्र, ९ नारायण, ९ प्रतिनारायण, २४ तीर्थकरोंकी माताएँ, २४ पिता, १४ कुलकर, ओर ११ रुद्र (महादेव ) ये सब १६९ उत्तम जीव हुए हैं।
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