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उसपार लोग नहीं जा सकते होंगे । परन्तु यह ठीक नहीं है । यह कैसे मिल सकता है ? क्योंकि ऋजुविमान तो एक लाख योजन ऊंचा है और यह केवल १७२१ योजन ऊंचा है |
देव देवी संभोग |
दोय सुरगमैं काय भोग है, दोय सुरगमैं फरस निहार चार सुरगमैं रूप निहारे, चार सुरगमैं सबद विचार ॥ चार सुरगमैं मनको विकलप, आगें सहज सील निरधार । अहमिंदर सब महा सुखी हैं, वंद सिद्ध सुखी अविकार ॥ २२ ॥ अर्थ - पहले दो स्वगमें अर्थात् सौधर्म ऐशान स्वर्ग में का भोग है अर्थात् इन स्वर्गों के देवों को जब काम भोगकी इच्छा होती है, तब वे स्त्री पुरुषोंके समान ही संभोग करते हैं। आगे सानत्कुमार और माहेन्द्र इन दो स्वगोंमें देव देवियों परस्पर स्पर्श मात्र से संभोगकी इच्छा पूर्ण हो. जाती है। इनसे ऊपर ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लांतव और कापिष्ट इन चार स्वर्गों में परस्पर रूप देखने मात्र से कामवास नाकी तृप्ति हो जाती है । आगेके शुक्र, महाशुक्र, शतार और सहस्रार इन चार स्वगोंमें कामरूप शब्दोंके श्रवणमात्रसे इच्छा मिट जाती है और आगेके आनत प्राणत आरण और अच्युत इन चार स्वर्गीमें