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ननके धारण करनेवाले जीव होते हैं । पांचवें कालमें अर्थ नाराच, कीलक और असंप्राप्तासृपाटिक इन तीन संहननोंवाले होते हैं । कर्मभूमिकी स्त्रियोंके भी ये ही तीन संहनन होते हैं । छट्ठे कालमें केवल एक असंप्राप्तास्पाटिक संहनन ही होता है, अन्य पांच नहीं । विकल चतुष्क जीवोंके अर्थात् दो इंद्रिय, ते इंद्रिय, चौ इंद्रिय और पंचेंद्रिय जीवोंके भी यही असंप्राप्तासृपाटिक संहनन होता है। एकइंद्री जीवोंके कोई भी संहनन नहीं होता, अर्थात् उनके हड्डियां कीली वेष्टनादि होती ही नहीं हैं । ये छहों संहनन सातवें गुणस्थान तक पाये जाते हैं । वज्रवृषभनाराच, वज्रनाराच और नाराच ये तीन संहनन ग्यारहवें गुणस्थान तक पाया जाता है | इससे यह ध्वनित होता है कि, अर्ध-. नाराच, कीलक और असंप्राप्तासृपाटिक ये तीन संहनन सातवें गुणस्थानसे ऊपर नहीं पाये जाते, वज्रनाराच और नाराच ग्यारहवें गुणस्थानसे ऊपर नहीं पाये जाते और पहले संहननको छोडकर अन्य पांच संहननींवाला क्षपकश्रेणी नहीं चढ सकता । ऐसा जिनवाणीमें कहा है । यह जिनवाणी धन्य है ।
चौवीसों तीर्थंकरोंके बीचका अन्तराल समय ।
सवैया इकतीसा |
पचास तीस दस नौ किंरोर लाख नब्बै नौ, सहसकोर नौसे कोर नब्बै नौ कोर है ।