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वाले अनुदिश विमानोंतक जाते हैं । नारायवाले नौग्रैवेयिकके ऊपर नहीं जा सकते । एक वृषभनाराच संहननवाले पांच अनुत्तरोंतक जाते हैं । वज्रनाराचवाला अनुदिश विमानोंके ऊपर नहीं जा सकता । जो चरमशरीरी होता है अर्थात् जिसे उसी भवमें मोक्ष प्राप्त होना होता है, उसका वज्रवृषभनाराच संहनन ही होता है । ये सत्य वचन जिन भगवानके कहे हुए हैं । इनकी बन्दना करता हूं। .
छह कालों और चौदह गुणस्थानों में कौन २ संहनन होते हैं ? प्रथम दुतिय अरु तृतिय कालमै पहिला जानौ ।' चौथे षटसंहनन, पंचमें तीन बखानौ ॥ कर्मभूमि तिय तीन, एक छठेके माहीं। विकल चतुष्कै एक, एक इंद्रीकै नाहीं॥ षट कहे सात गुणथान लग, तीन इग्यारै लौं लहे। इकखिपकश्रेणिगुणतेरहैं,धन जिनवाणीमैं कहे१८ • अर्थ-पहले दूसरे और तीसरे कालमें पहला अर्थात् वज्रवृषभनाराचसंहनन होता है । चौथे कालमें छहों संह
१ मुषमासुषमा, सुषमा, सुषमाटुःपमा, दुःषमासुषमा, दुःषमा और दुःषमादुषमा इस प्रकार छह कालोंके नाम हैं । पहिला काल चार कोटाकोटि सागर वर्षोंका होता है, दूसरा तीन कोटाकोटि सागरका, तीसरा दो कोटाकोटि सागरका, चौथा ४२.० ० ० वर्षकम एक कोटाकोटि सागरका, पांचवाँ इक्कीस हजार वर्षका और छटा भी इक्कीस हजार वर्षका होता है ।