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सानत्कुमार माहेन्द्र में ७, तीसरे ब्रह्म ब्रह्मोत्तर में ४, चौथे लांत कापिष्टमें २, पांचवें शुक्र महाशुक्रमें ?, छडे सतौर सहस्रार में १, सातवें आनंत प्राणत में ३ और आठवें आरण अच्युत जुगलमें तीन पटल हैं। तीनों ग्रैत्रेयिकोंमें अर्थात् ऊर्ध्व मध्य और अधो ग्रैवेयक में तीन तीन मिलकर ९ पटल हैं । नौ अनुदिशों में १ और पांच अनुत्तर विमानोंमें १ पटल है । इस तरह ६३ पटल स्वर्गोंके हैं । सब मिलाकर नरकों और स्वर्गोंके ११२ पटल हुए । इन दोनोंमें अर्थात् स्वगमें जो सम्यक्त्वसहित जीव हैं, वे धन्य हैं ।
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छहों संहननवाले जीव मरकर कहां कहां उत्पन्न होते हैं ?
छौं तीसरे जाहिं, पांच चौथे पंचम लग । चार संहनन छठे, एक सातवाँ नरक मग ॥ छहौं आठमें सुरग, पांच बारम सुर जावैं । चार सोलमें लीक, तीन नौ ग्रीवक पावैं ॥ दोनों संहनन नउत्तरै, एक पंच पंचोत्तरे । इक चरमसरीरी सिव लहै, बंदों जैनवचन खरे ॥ १७ ॥ अर्थ- वज्रवृषभनाराच, वज्रनाराच, नाराच, अर्द्धनाराच,