________________
( २० )
साढ़ तिहत्तर विध यही, लोक अंतसौं ब्रह्म लग । राजू इकसौ सैंताल सब, धरम करें पावैं सुमग॥ १३
अर्थ - मध्यलोक में पूर्वपश्चिम दिशाकी चौडाई एक राजू और ब्रह्मस्वर्ग में पांच राजू है । दोनोंको मिलाने से छह राजू हुए । इनके आधे किये तो तीन राजू हुए । इनसे दक्षिण उत्तरकी मुटाई सात राजका गुणाकार किया, तो इक्कीस राजू हुए और उसमें ब्रह्मस्वर्ग तककी ऊंचाई साढ़े तीनका गुणा किया, तो ७३ || साढ़े तेहत्तर राजू हुए । यह मध्यलोक से ब्रह्मस्वर्ग तकका घनफल हुआ और इसी प्रकार से इतना ही अर्थात् ७३ || राजू घनफल ब्रह्मस्वसे लोकके अन्त तक हुआ, और दोनोंका जोड अर्थात् ऊर्द्धलोकका कुल घनफल १४७ राज हुआ । यह ऊर्द्धलोकका सुमार्ग धर्म करने से प्राप्त होता है ।
तीनसौ तेतालीस राजूका जुदा जुदा ब्योरा । छियालीस चालीस, और चौतीस अठाई । बाइस सोलै दस, उनीस साढ़े बतलाई || साढ़े सैंतिस साढ़, सोल साढ़े सोला भनि । आगें दो दो हीन, अंत ग्यारा राजू गनि ॥ इम सात नरक आठौं जुगल, ऊपर सोला थानमैं । 'राजू तेतालिस तीनसै, घनाकार कहि ग्यानमै ॥१४
अर्थ - सातों नरकोंका, स्वर्गके आठों युगलोंका और