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(२१) सोलहवें स्वर्गसे लेकर लोकके अन्त तक सोलह स्थानोंका क्रमसे ४६, ४०, ३४, २८, २२, १६, १०, १९॥, ३७॥, १६॥ १६॥, १४॥ १२॥ १०॥, ८॥ और ११ राजू 'घनफल है और उम सबका जोड ३४३ राजू थनाकार होता है, ऐसा शास्त्रमें कहा है।
तीनों वातवलयोंका जुदा जुदा परिमाण।
. सवेचा इकतीसा ( मनहर ) । तलैं बातबलै मौटे जोजन सहस साठ,
ऊंचें एक राजूलौं साठ सहस धारने । आगें सात पांच चारि तीनौं सोलै जोजनके, .. मध्य पांच चारि तीन बाराकै चितारने॥ ब्रह्मलोक तीनौं सोलै अंतमाहि तीनौं बार,
सीस दोय कोस एक कोसके बिचारने । तनुबात धनुष पनि सोलसे ताक भाग. . ___ पंद्रहसै सिद्ध एक भागमैं निहारने ॥१५॥
१ लोकके तलेकी चौड़ाई ७ राजू है, और सातवें नरकके नीचेकी चौड़ाई ४ का सातवां भाग है । इन दोनोंको जोड़ा तो +४=१२ हुए, और आधा किया तो, हुए । अब इसमें उत्तर दक्षिण मुटाईका और एक राजू ऊंचाईका गुणा करते हैं, तो Y5x9x=४६ राजू घनफल लोकके नीचेसे सातवें नरकके नीचेतकका हुआ । इसी तरहसे सातवें नरकके नीचेकी चौड़ाई और छठे नरककी नोचेकी चौड़ाई 3 को मिलाने, आधा करने, और सातसे तथा एकसे गुणा करनेपर ४० राजू सातवें नरकका घनफल हुआ। आगे भी इसी तरहसे समझ लेना।