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है, - उसको कोई सहारा नहीं है । अर्थात् लोक घोि वातवलय के आधार है, घनोदधि घनवातवलयके और वह तनुवातवलयके आधार है । तनुवातवलय आकाशके आधार है और आकाश स्वप्रतिष्ठित है—उसे किसीका आधार नहीं है । क्योंकि वह सर्वव्यापी है । तनुवातके अन्ततक लोक -- संज्ञा है ।
तीन सौ तेताल राजू घनाकार सब लोक, घनोदधि घन तनुवातके अधार है । तामैं चौदै चौखूंटी त्रसनाली त्रस थावर, परै तीनसौ उन्तीस थावर सदा रहै । दच्छिन उत्तर डोरी वियालीस राजू सब,
पूरव पश्चिम उनतालकौ विचार है । राजू अंस बीसासौ तेतालीस अधिक कहे,
लोक सीस सिद्धनिकौं मेरौ नमोकार है ॥ ९ ॥ अर्थ-सारे लोकका घनफल ३४३ राजू है । ( लम्बाई चौड़ाई और मोटाईके गुणनफलसे जो निकलता है, उसे घनफल कहते हैं । यदि समस्त लोकके एक एक राजू लम्बे चौड़े और मोटे खंड किये जावें, तो उनकी संख्या ३४३ होगी ) और ( पहिले कहे अनुसार ) यह लोक घनोदधि वात, घनवात और तनुवातवलय के आधारसे ठहरा हुआ है । इसके बीचमें १४ राजू ऊंची और चौखूंटी अर्थात् एक