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(१४) राजू लम्बी एक राजू चौड़ी (पांसेसरीखी ) सनाली है, जिसमें त्रस और स्थावर जीव रहते हैं और उस वसनालीके बाहिर शेष ३२९ राजूके स्थानमें केवल स्थावर जीव रहते हैं । सब लोकाकाशकी दक्षिण उत्तर डोरी ४२ राजू है . अर्थात्. लोकके नीचेकी और ऊपरकी मोटाई सात सात राजू,
और दोनों तरफकी ऊंचाई चौदह २ राजू इस तरह ४२ राजू है और पूर्व पश्चिम डोरी कुछ अधिक ३९ राजू अर्थात् ३९४० राजू है । ऐसे विस्तारवाले लोकके सीसपर अर्थात् ऊपर (तनुवातवलयमें ) जो सिद्ध भगवान् विराजमान हैं, उनको मेरा नमस्कार है।
इस सवैयामें जो पूर्व पश्चिमकी डोरी ३९ से अधिक बतलाई है, इसका कारण क्षेत्रगणितसे इस प्रकार स्पष्ट होता है:-नकशेमें क से घ तककी रेखा ७ राजू है और क से ख तक तथा ग से घ तक तीन तीन राजू हैं, क्योंकि ख ग एक राजू है । और ख से च तक तथा ग से ठ तककी रेखाएं हमको मालूम हैं कि सात सात राजू हैं । इस तरह हमको क ख च तथा ग घ ठ त्रिभुजोंकी दो दो रेखाओंकी लम्बाई मालूम है और क च तथा घठ करणोंकी लम्बाई
१ लोकका कुल घनफल ३४३ राजू है । इसमें त्रस नाड़ीका घनफल १४४१x१=१४ निकाल दीजिये, तो ३२९ शेष रह जायेंगे । २ एकेन्द्री जीवोंको अर्थात् पृथ्वी, जल, तेज, वायु और वनस्पति कायके जीवोंको स्थावर कहते हैं और दो इन्द्रीसें लेकर पंचेन्द्री जीवों तकको इस जीव कहते हैं । ३ घेरा वा परिधि ।