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वातवलय और तनुवातवलय इन तीन वातवलयोंसे इस तरह घिर रहे हैं, जैसे वृक्ष छाल ( वल्कल ) से, अंडा अपने ऊपरकी जालीसे और जीवोंके शरीर चमडेसे लिपटे वा घिरे दिखलाई देते हैं । अभिप्राय यह कि, सारा लोक घनोदधि वातवलयसे घिरा हुआ है, घनोदधि वातवलय घन वातवलयसे घिरा है और इसी प्रकार घनवातवलय तनुवातवलयसे वेष्टित है । इन तीन लोकोंमेंसे अधोलोक वेत्रासनके अर्थात् बेतके बने हुए आसनके समान है, मध्य लोक थालीके समान है, और ऊर्द्धलोक बीचमें चौडा और ऊपर नीचे संकीर्ण आकारवाले मृदंगके आकारका है। दोनों हाथोंको कमरपर रखके और दोनों पैरोंको तिरछे फैलाकर खडे होनेसे मनुष्यका जैसा आकार होता है अथवा एक आधे मृदंगको औंधा रखके उसपर एक पूरे मृदंगके रखनेसे जैसा आकार बनता है, वैसा समूचे लोकका आकार है। यह लोक अविनाशी है, अर्थात् सदासे है और सदा रहेगा। जिस तरह घरमें छींका लटका रहता है, उसी प्रकारसे अनन्त अलोकाकाशके बीचमें यह लोक लटक रहा है, अन्तर सिर्फ इतना है कि, छींका एक रस्सीके आधारसे लटका रहता है, परन्तु लोक निराधार
१ अधोलोक अपनी तलीमें सात राजू चौड़ा और सातराजू मोटा इस तरह चौकोर वा समचौरस है । २ मध्यलोकका स्थंडिल अर्थात् चबूतरा चौकोर है । थालीकी उपमा स्वयंभूरमण समुद्रतककी ही विवक्षासे ग्रन्थकारने दी है। समचौकोर क्षेत्रमें वृत्त खींचनेपर जो चार कौने शेष रह जाते हैं, वे इस दृष्टान्तमें अपेक्षित नहीं हैं । उनकी अपेक्षा लेनेसे मध्यलोक चौकीके आकार हो जाता है । ३ मृदंगके आकार ऊंचाई रूप । .