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(११) । है, और ऊंचाई आदिसे अन्ततककी चौदह राजू है । इस लोकमें जीव, अजीव, धर्म, अधर्म, आकाश और काल ये छहों द्रव्य भरे हुए हैं । इसके असंख्यात प्रदेश हैं (एक . परमाणु जितना आकाश रोकता है, उसे एक प्रदेश कहते हैं । ) इसने मूर्तीक वेष धारण किया है, अर्थात् यद्यपि लोकाकाश मूर्तिरहित है-स्पर्शरसगंधवर्णरहित है, तो भी मूर्तीक अर्थात् डेड मुरज ( मृदंग) आकार है । यह स्वयंसिद्ध है । इसको म कोई बनाता है, न कोई धारण करता है और न कोई संहार करता है। तीनों लोक तीनौं वातवले बेड़े सब ठौर,
वृच्छछाल अंडजाल तनचाम देखिए । अधोलोक बेत्रासन मध्यलोक थाली भन, ___ ऊरध मृदंग गनि ऐसो ही विसेखिए । कर कटि धारि पाउंकौं पसारि नराकार, ___ डेढ़ मुरज आकार अविनासी पेखिए । घरमाहिं छीको जैसैं लोक है अलोक बीचि,
छींकेकौं अधार यह निराधारलेखिए॥८॥ अर्थ-तीनों लोक सब जगह घनोदधि वातवलय, धन-- १ जहां जीव अजीवादि पांच द्रव्य नहीं हैं, केवल एक आकाश द्रव्य है, उसे अलोकाकाश कहते हैं । २ मूलसे सात राजूकी ऊंचाई तक अधोलोक है, सुमेरुपर्वतकी ऊंचाईके बराबर एक लाख चालीस योजन मध्य लोक है और सुमेरुते ऊपर एक लाख चालीस योजन कम सात राजू ऊर्द्धलोक है। .