________________ पुस्तक नं. श्री जैन भारती चरचासम्बन्धी ग्रन्थ त्रिलोकसार-श्रीनेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्त और स्व० विद्वर्य पं० टोडरमलजीकृत विस्तृत इसी ग्रन्थके आधारसे स्व० कविवर द्यानतराय बनाया है। यह ग्रन्थ बड़े महत्त्वका है। 'गोमसार' सिद्धान्त ग्रन्थका आदर हे वेस ग्रन्थका भी आदर है। इस महान ग्रन्थमें जैनधर्मके, ककी रचनाका खुलासा और बड़े विस्तारके साथ वर्णन किया गया है। इसका स्वाध्याय करनेवाले सहजहीमें इन बातोंको जान सकेंगे कि जैनधर्मके अनुसार पृथ्वी घूमती हे या स्थिर, सूर्य, चन्द्र तथा नक्षत्र घूमते हैं या स्थिर, उनकी गति किस तरह होती है, ग्रहण क्यों पड़ता है, स्वर्ग-नरक क्या हैं उनकी रचना कैसी है, आदि। बड़े साईजके पृष्ठ-४३२, सुन्दर कपड़े की जिल्द / मूल्य 5 // ) रु० त्रिलोकसार-श्रीनेसिवन्द्रसिद्धान्तचक्रवर्तीकृत मूल गाथाये || और श्री माधवचन्द्र विद्यदेवकृत संस्कृतटीका। मूल्य 10) जेन-सिद्धांतप्रवेशिका-स्वपं गोपालदासजीकृत। प्रश्नों के रूप जैनधर्मके तत्त्वोंका सरल रूपसे खुलासा वर्णन है। बड़ी। उपयोगी पुस्तक है। मूल्या चरचा-समाधान-स्व०पं० भूधर मिश्रकृत। इसमें अनेक प्राचीन ग्रन्थोंकी धार्मिक, तात्त्विक चर्चाओंका संग्रह और उनका lil समाधान है। मूल्य 2) उपर्युक्त पुस्तकोंके अतिरिक्त हमारे यहाँ सब जगहकी सब तरहकी छपी हुई पुस्तकें हर समय मौजूद रहती हैं। पत्र लिखकर सूचीपत्र मुफ्त मँगा लीजिये। मिलनेका पता: छगनमल बाकलीवाल, मालिक-जैनग्रन्थरत्नाकर कार्यालय, ठि० हीराबाग, पो० गिरगांव-बम्बई। santsheBASEARN RBERIES