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एक परदेस में अनंत कर्मवर्गना हैं, एक वर्गना अनंत परमाणु ठानिए || अनुमैं अनंत गुण एक गुणमैं अनंत, परजाय एककै अनंत भेद जानिए | तिनितें हुए अनंत तातें होंहिंगे अनंत, सब जानै समाहिं देव सो बखानि ॥ १०२ ॥
अर्थ- संसार में अपनी अपनी जुदी सत्ताको लिये हुए अनन्त जीव हैं और प्रत्येक जीवके अनन्त गुण हैं । यद्यपि विके गुणोंकी संख्या जीवराशिसे अनन्त गुणी है, तो भी आपसे वह अनन्त ही कही जाती है । इन गुणोंमेंसे एक एक गुणके असंख्यात असंख्यात प्रदेश हैं । क्योंकि जीव असंख्यात प्रदेशी है और निश्चयनयसे जीव और गुणमें भेद नहीं है - वे अभिन्न हैं । जीवके उक्त एक एक प्रदेशमें अनन्त कर्मवणाएँ हैं- प्रदेशों के साथ एकावगाहरूप हो रही हैं और एक एक कर्मवर्गणा में अनन्तानन्त पुद्गल परमाणु हैं। क्योंकि अनन्त परमाणु मिले विना कर्मरूप वर्गणाएँ नहीं बन सकती हैं । इन सब परमाणुओं में प्रत्येक प्रत्येक परमाणु के अनन्त अनन्त गुण हैं और एक एक गुण, अनन्त अनन्त पर्यायरूप परिणमन करता है तथा एक एक पर्यायके अनन्त अनन्त भेद हैं । इन सब पर्यायोंके अनन्त अनन्त भेद वर्तमान में हैं इनसे अनन्तगुणे पूर्व के अनन्त कालमें हो गये