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(१४७) स्यात् अवक्तव्य कहते हैं । पदार्थ स्वचतुष्टयसे तो अस्तिरूप है और एक साथ अस्तिनास्तिरूप होनेसे (चौथे भंगके समान ). कहा नहीं जा सकता है, इसलिये स्यात् अस्तिअवक्तव्य है । इसी तरह परचतुष्टयसे नास्तिरूप है तो भी एक साथ अस्तिनास्तिरूप पूर्ण स्वरूप कहनेमें नहीं आ सकता है, इसलिये स्यात् नास्ति अवक्तव्य है। और पदार्थ अपने तथा परके चतुष्टयसे अस्तिनास्तिरूप है; परन्तु एक साथ अस्तिनास्तिरूप कहा नहीं जा सकता है, इसलिये स्यात् अस्तिनास्तिअवक्तव्य है । इस तरह ये सातों भंग स्यादवादसे सधते हैं।
पदार्थ अनेकान्तस्वरूप है । स्यात् वा कथंचित् शब्दका आश्रय लिये विना किसी भी पदार्थका यथार्थ स्वरूप नहीं कहा जा सकता है । अमुक पदार्थ 'ऐसा ही है' इस प्रकार कहनेसे पदार्थस्थित अन्य धर्मोंका सर्वथा निषेध होता है इसलिये ऐसा कहना ठीक नहीं; किन्तु ऐसा भी है ' इस प्रकार कहा जा सकता है क्योंकि इससे अन्य धर्मोंका सर्वथा अभावसिद्ध नहीं होता फिर भी प्रत्येक पदार्थका स्वरूप अपेक्षासे कहा जाता है । जहां अपेक्षा नहीं है, वहीं मिथ्या है ( असत्य है)।
सर्वज्ञके ज्ञानकी महिमा । जीव हैं अनंत एक जीवके अनंत गुण, एक गुणके असंख परदेस मानिए ।