________________
(१४६)
जिनवाणीके सात भंग। दर्व खेत काल भाव अपने चतुष्टै अस्त, परके चतुष्टैसें न नासत दरब हैं। आपसे है परसैं न एक समै अस्तनास, ज्योंके त्यों न कहे जाहिं अस्त अवतव हैं। अस्त कहैं नासका अभाव अस्त अवतव, नास्त कहें अस्त नाहिं नास अवतव हैं। एकठे कहे न जाहिं अस्तनासअवतव, स्यादवादसेती सात भंग सधैं सब हैं ॥१०१॥
अर्थ-प्रत्येक द्रव्य अपने द्रव्य क्षेत्र काल भावरूप चतुष्टयसे अस्तिरूप है, इसलिये उसे स्यात् ( कथंचित् ) अस्तिरूप कहते हैं और वही पदार्थ परके द्रव्यक्षेत्रकाल भावरूप चतुष्टयसे 'नहीं' है, इसलिये उसे स्यात् नास्तिरूप कहते हैं। आपके चतुष्टयसे वह है और परके चतुष्टयसे नहीं है, इस प्रकार ये दोनों गुण एक ही वस्तुमें एक ही समय हैं, इस लिये उसे स्यात् अस्तिनास्तिरूप कहते हैं । पदार्थका स्वरूप एकान्तसे ज्योंका त्यों अर्थात् एक साथ परस्पर विरुद्ध अस्तित्व नास्तित्वादि धर्मोंका समुदाय कहा नहीं जा सकता है। जिस समय अस्ति कहते हैं, उस समय नास्तिका कहना संभव नहीं होता है और जिस समय नास्ति कहते हैं उस समय अस्तित्वका कहना नहीं बन सकता है इसलिये उसे